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अर्थ-सकल अर्थ के संग्रहवाले स्थानांग यादि नव अंग सूत्र और उपांगसूत्र पंचाशक आदि प्रकरण शास्त्र इन्हों की टीका करने से प्राप्त स्वच्छ कीर्त्तिरूप सुधा से उज्वल किया हे पृथ्वीमंडल जिन्होंने ऐसे श्रीमदुमभयदेवसूरिजी महाराज उनके शिष्य मतिमान् श्रीजिनवल्लभगणि है नाम जिनका उन्होंने कर्म प्रकृति आदि गंभीर शास्त्रों से उद्धार करके यह सार्द्धशतक मूल प्रकरण ग्रंथ रचा है । इस तरह चित्रवालगच्छ के श्रीधनेश्वर सूरिजी महाराज ने नवांगटीकाकार श्रीमद्मभयदेवसूरिजी उनके शिष्य श्रीजिनवल्लभ ( गण ) सुरिजी, यह गुरु-शिष्यपरंपरा लिख दिखलाई है, तो इन उपर्युक्त शास्त्रप्रमाणों से चंद्र कुल के श्रीवर्द्धमानरिजी उनके दो शिष्य श्रीजिनेश्वरसूरिजी तथा श्रीबुद्धिसागरसूरिजी, उनके बड़े शिष्य श्रीजिनचंद्रसूरिजी तथा लघुशिष्य नवांगटीकाकार श्री अभयदेवसूरिजी उनके शिष्य श्रीजिनवल्लभसुरिजी, उनके शिष्य श्रीजिनदत्तसूरिजी, इत्यादि खरतरगच्छवालों की गुरु-शिष्य परंपरा में नवांगटीकाकार श्री अभयदेवसूरिजी महाराज ने श्रीजिनवल्लभसूरिजी महाराज को उपसंपद अर्पण करके अपने शिष्य किये, इत्यादि इस विषय में उपर्युक्त शास्त्र प्रमाणों को देख कर तपगच्छ के श्रीमानंदसागरजी अपनी शंका दूर करें और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर शास्त्र प्रमाणों से प्रकाशित करें
१ [ प्रश्न ] तुमने लिखा कि- " जिनवल्लभ ने बड़ी दीक्षा उपसंपदा इत्यादि" तो हम भी लिखते हैं कि - "जगच्चंद्र को बड़ी दीक्षा १, उपसंपदा २ और प्राचार्यपदवी ३ इन तीन में से चित्रवालगच्छ के श्रीधनेश्वरसूरिजी के शिष्य श्रीभुवनचंद्रसूरिजी उनके शिष्य शुद्ध संयमी श्रीदेवभद्रगणि ने कौन सी वस्तु दी ।
२ [प्रश्न ] श्रीजगश्चंद्रजी बड़ी दीक्षा उपसंप्रदादि प्रह
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