________________
( ८६ ) एयाए विहीए गंता तिविहेण णमिऊण साहुणो, पच्छा सामाइयं करेइ करेमि भंते सामाइयं सावज्जं जोगं पचख्खामि जावनियमं पज्जुवासामि दुविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि तस्स भंते पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसरामित्ति उच्चारिऊण पच्छा इरियावहियाए पडिक्कमइ ।
अर्थ-उक्त विधि से साधु के पास जाकर श्रावक विविध नमस्कार करके पीछे सामायिक करे उसमें करेमि भंते समाइयं इत्यादि नवमा सामायिक व्रत का दंडक पहिली उच्चर के पीछे इरियावहि को पडिक्कमे यह श्रीहरिभद्रसूरिजी महाराज के वचन तपगच्छवाले मानते हैं या नहीं ?
२ [प्रश्न ] यह है कि श्रावकधर्मप्रकरण ग्रंथ में श्रावक का नवमा सामायिक व्रत के अधिकार में लिखा है किमूल-चैत्यालये १ स्वनिशांते, २ साधूनामंतिकेऽपि वा ३ ।
कार्य पौषधशालायां, ४ श्राद्धैस्तत् विधिना सदा ॥२॥ ___टीका-चैत्यालये विधिचैत्ये १ स्वनिशांते स्वगृहे २ स्वगृहेपि विजनस्थाने इत्यर्थः साधुसमीपे ३ पोषो पुष्टिः ज्ञानादीनां धीयते अनेनेति पौषधं पर्वाऽनुष्ठानं उपलक्षणत्वात सर्वधर्माऽनुष्ठानार्थं शालागृहं पौषधशाला तत्र वा ४ तत् सामायिकं कार्य श्रावकैः सदा नोभयसंध्यमेवेत्यर्थः कथं विधिना खमासमणं दाउं इच्छाकारेण संदिस्सह भगवन् सामाइय
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com