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। १०२ ) श्रीजिनप्रतिमा की पूजा श्रीज्ञाताधर्मकथा सूत्र प्रादि शास्त्रों में द्रौपदी आदि ने करी लिखी है। वास्ते पुरुषों को तथा स्त्रियों को श्रीजिनप्रतिमा की पूजा करनी ऐसा श्रीगणधर आदि महाराजों का उपदेश है तथा श्रीगणधर महाराजों ने जिस तरह श्रीठाणांग सूत्र आदि ग्रंथों में—( अहिमांससोणिए इत्यादि ) अर्थात् हड्डी, मांस, रुधिरादि से श्रीजिनवाणी की अाशातना नहीं होने के लिये सूत्र अध्ययन ( पठन पाठन) नहीं करना लिखा है, इसी तरह श्रीप्रवचनसारोद्धार आदि अनेक ग्रंथों में ( खेलं इत्यादि ) अर्थात् नाक संबंधी मल इत्यादि से तथा ( लोहियं इत्यादि ) अर्थात् शरीर संबंधी (खून ) रुधिरादि से श्रीजिनप्रतिमा की आशातना नहीं करना लिखा है वास्ते कोई पुरुष का स्त्री के शरीर द्वारा अकस्मात् ( खून ) रुधिरादि करते हैं तो आशातनादि नहीं होने के कारणों से श्रीजिनप्रतिमा की चंदनादि विलेपन द्वारा अंग पूजा नहीं करे, इसी लिये श्रीमत् बृहत् खरतरगच्छनायक युगप्रधान दादाजी श्रीजिनदत्तलरिजी महाराज ने इस दुस्समकाल में श्रीजिनप्रतिमा की चंदनविलेपनादि से अंग पूजा करती हुई तरुण स्त्रियों को अकाल वेला प्रकट हुआ ऋतुधर्म उसकी बहुत मलिनता के दोष से याने पूजा समय ऋतुधर्म वाली हुई उस महामलिन तरुण स्त्री का हाथ के स्पर्श से अतिशयवाली तथा श्रीजिनशासन की उन्नति करनेवाली चमत्कारी देवाधिष्ठित श्रीमुलनायक जिनप्रतिमा की अाशातना और उसके अधिष्ठाता देव का लोप नहीं होने के लिये इस विशेषलाभ को दीर्घ दृष्टि से विचार कर तरुण अवस्था वाली स्त्री को श्रीमूलनायक जिनप्रतिमा की चंदनादि विलेपन द्वारा केवल , अंगपूजा नहीं करना उच्छूत्रपदोद्घाटनकुलक में लिखा है तथा विधिविचारसार कुलक में भी लिखा है किShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
मूलनादव का लोमविचार कर तनादि विलेपन लिखा