Book Title: Prashnottar Vichar
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 108
________________ ( ११० ) अथ रजस्वला ( ऋतुवंती ) स्त्री अधिकारनी सिद्धांतोक्त गाथा प्रारंभ जा पुप्फपवहं जाणीउण, न हु संका करेइ नियचित्ते । छिव्व अ भंड़गाइ, तथ्य य दोसा बहू हुंति ॥ १ ॥ अर्थ - जे पुष्पवती ( ऋतुधर्मवाली ) स्त्री जाणीकरीने पोताना चित्तने विषे शंकाय नहीं हांड़लादिक ठामने आभड़े ( छुए ) त्यां तेने घणा महोटा दोष लागे ॥ १ ॥ लच्छी नासइ दूरं, रोगायं तह वर्हति अणुवरथं । गियदेव य मुच्चति, तं गेहं जे न वज्जंति ॥ २ ॥ अर्थ-तेनी लक्ष्मी दूरनाशी जाय तथा रोग आतंक (पीड़ा) विषम अनिवारक थाय घरना अधिष्ठायिक देव तेनुं घरमूकी आपे जे ऋतु धर्म थी आशातना नहीं वर्जे तेने पूर्वोक्त वानां थाय ॥ २ ॥ जइ कहवि अणाभोगे, पुरिसेवि य छिन्नइ नियमहिलाए । गाहायरस होइ सुद्धि, इय भणियं सव्वलोपसु ॥ ३ ॥ अर्थ- जो कदाचित् प्रजाणतो थको कोइ पुरुष पोतानी ऋतु धर्म वाली स्त्री ने स्पर्श करे तो स्नानकरयां शुद्धिधाय ए वात सर्व लोक मांहे कहेलीवे ॥ ३ ॥ विहिजिण भवणे गमणं, घरपड़िमा पुत्रं च सज्जायं । पुप्फवर इथ्थी, पड़िसिद्धं पुव्वसूरीहिं ॥ ४ ॥ अर्थ-विधि जिनभवन ( मंदिर ) विषे जावुं घरमां जिन प्रतिमानी पूजा करवी ने स्वाध्याय करवो पटला वानां ऋतुधर्म Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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