Book Title: Prashnottar Vichar
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 111
________________ (११३ ) से उन तरुण स्त्री को श्रीमूलनायक जिनप्रतिमा की केवल चंदनं विलेपनादि से अंगपूजा का निषेध आशातना और अधिष्ठायकदेव का लोप दुःकर्मबंध इत्यादि नहीं होने के लिये उपर्युक्त महानुभावों के वचन उचित विदित होते हैं, सो तपगच्छ के श्रीआनंद सागरजी द्वेष भाव के दुराग्रह को त्याग कर स्वपरहित के लिये सत्य स्वीकार करें अन्यथा निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर पाशातना न हो इत्यादि शास्त्रप्रमाण संमत सत्य प्रकाशित करें प्रतिमा की महाશાસન સમ્રાટ અા.ભ. व को प्राप्त होकर શ્રી વિજય નેમિસૂરિશ્વરજી મ.સા. નાં શિષ્યરત્ના ती है इसी लिये પ.પૂ.આ.ભ. શ્રી પદ્યસૂરિ ગ્રંથાલય ऋतुवंती स्त्री को દાદા સાહેબ, ભાવનગર करना मानते हो तिमा की चंदन स्त्रयों को अत्यंत प्रतिमाधिष्ठायक दि होते हैं वास्ते की चंदन विलेप _T की अंग पूजा कर परपुत्राशासगाए नारणास कार पुरुष वा कोई स्त्री श्रीजिनप्रतिमा की अंग पूजा नहीं करें ऐसा तपगच्छवालों का मंतव्य वा उपदेश है या नहीं? ३[प्रश्न] इस दुषम काल में तरुण स्त्री को कभी १० या १५ दिने कभी २० दिने और कभी २५ दिने इस तरह अनियम से बेटेम अकस्मात् ऋतुधर्म होता है उससे श्रीजिनप्रतिमा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat 'www.umaragyanbhandar.com

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