________________
( ११२ )
पूजादि भक्ति करना यह विधि निषेध है क्योंकि शास्त्रों में कहा है कि श्रीजिनमंदिर में रात्रि में नंदि निषेध बजि पूजा तथा प्रतिष्ठा निषेध श्रीजिनमंदिर में रात्रि को स्त्रियों का प्रवेश (आना) निषेध नाटक पूजा भक्ति रात्रि को निषेध है कोई तीर्थादि में वह करने में आता हुआ देखते हैं हो तो कारणिक है ऐसा जानना और भी लिखा है कि
श्राद्धानां रात्रौ जिनालये आरात्रिकोत्तारणं युक्तं न वा ? श्राद्धानां जिनालये रात्रौ आरात्रिकोत्तारणं कारणे सति युक्तिमन्नान्यथा ।।
अर्थ - श्रावकों को रात्रि में श्रीजिन मंदिर में आरति पूजा करनी युक्त है वा नहीं ? ( उत्तर ) श्रावकों को श्रीजिनमंदिर में रात्रि में आरती पूजा करनी कारण हो तो युक्त है अन्यथा रात्रि को श्रीजिनमंदिर में आरती पूजा करनी युक्त नहीं है तथा
-
कायोत्सर्गस्थितजिनप्रतिमानां चरणादिपरिधापनं युक्तं नवा ? जिनप्रतिमानां चरणादिपरियापनं तु सांगतानव्यवहारेण न युक्तियुक्तं प्रतिभाति ॥
अर्थ – कायोत्सर्गस्थित श्रीजिनप्रतिमा के चरण आदि अंग को वस्त्र पहराने रूप पूजा युक्त है या नहीं ? ( उत्तर ) श्रीजिनप्रतिमा के चरण आदि अंग को वस्त्र पहराने रूप पूजा वर्त्तमान काल के व्यवहार से युक्तियुक्त नहीं भासती है
यह श्रीजिनप्रतिमा की वस्त्र पूजा का निषेध तथा वर्त्तमान काल में श्रीजिनप्रतिमा की चंदन विलेपनादि से अंग पूजा करती हुई बहुत तरुण स्त्रियों को ऋतुधर्म होता है इसी अभिप्राय
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com