Book Title: Prashnottar Vichar
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 109
________________ वाली स्त्री ने पूर्व निषेध्यां हे ॥ ४ ॥ ( १११ ) सूरियें ( पूर्वाचार्य महाराजों ने ) आलोणा न पडइ, पुप्फवइ जं तवं करें नियमा । नविय सुत्तं अन्नं, ता गुणइ तिर्हि दिवसेर्हि || ५ ॥ अर्थ - ऋतुधर्मवाली स्त्री त्रणदिवस सुधी गुरुवासें थी आलोयण लेवाने थें पोतानुं पाप प्रकाशे नहीं वली तपस्या न करे नियम करे नहीं सूत्र गुणे ( भणे ) नहीं वल्ली अन्यपण कोई भाषण न करे ॥ ५ ॥ लोए लोउत्तरिए, एवं विहदंसणं समुद्दिछं । जो भाइ नथ्थि दोसा, सिद्धांतविराहगो सो उ ॥ ६ ॥ अर्थ - लोकमांहे तथा लोकोत्तर एटले जिन शासनमांहे एवी रीते ऋतुवंती स्त्री हांडलादिक टामने जिनप्रतिमा ने आभडे त्यांतेने घणा महोदा दोष लागे ए कहां जे कहे के के एमां दोष नथी ते सिद्धांना विराधक जाणवा ॥ ६ ॥ " तपगच्छाधिराज भट्टारक श्रीहीरविजय सूरि प्रसादी कृत हीरप्रश्नोत्तर ग्रंथ में भी लिखा है कि जिनगृहे निशायां नाट्यादिकं विधेयं न वा ? जि निशायां नाय्यादिविधेर्निषेधो ज्ञायते या उक्तं- रात्रौ न नंदिनवलिः प्रतिष्ठा । न स्त्रीप्रवेशो न च लाश्यकीला || इत्यादि किंच कापि तीर्थादौ तत् क्रियमाणं दृश्यते तत्तु कारणिक मिति बाध्यं ॥ अर्थ - श्रीजिनमंदिर में रात्रि को नाटक पूजादि भक्ति करनी वा नहीं ? ( उत्तर ) श्रीजिनमंदिर में रात्रि को नाटक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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