________________
( १०६ ) इसी तरह पुप्पवतीविचार नामक पुस्तक में छपी हुई छोतीभास में भी लिखा है किछोती मूर्ति स्त्री धर्मिणी जाणो, तेहनो भय घणो प्राणो रे । जेहनो दोष दीसे निज नयणे, वली कह्यो जिन वयणे रे ।। छो० दीठे अंध होय नेत्र रोगी, पंढ होये संभोगी रे । गंधे अन्नादिक कश्मल थाये, पापडी पडीधावलाय रे ॥छो बेडी बूडे जेहने संगें, जावा रंग उरंगे रे। स्नान जलें वेल वृक्ष सुकाये, फल फूल नवि थाये रे ॥ छो० एम जाणी बीजे घरे राखो, तेहशुं भाष म भासो रे । वस्तुवानी आमड़वा न दीजे, दूरथकांज रहीजे रे ॥ छो० एम न राखे जे नर निज गोरी, तेह पाप रथ धोरी रे । एम न रहे जे नारी असारी, ते पामे दुःख भारी रे ॥ छो० शाकिनी जेम कुटंबने खाये, नरकमांहे ते जाय रे।। दुःख देखे ते त्यां अतिघणां, छेदादिक वधबंधतणां रे ॥ छो० सापिणी वाघणी छणी सिंहणी, श्यालिणी सुणी होई कागणी रे अशुद्ध योनिमां पछी दुःख पामे, भवोभव पातक ठामें रे॥ छो० ___ पुष्पवतीविचार नामक पुस्तक में अंचलगच्छ वालों की करी हुई सूतक की सजाय है उसमें भी लिखा है कि- .
जिनपडिमा अंग पूजासार, न करे ऋतुवंती जे नार । एम चर्चरीग्रंथमांहे विचार, ए परमारथ जाणो सार।।
पुष्पवतीविचार नाम की पुस्तक के पत्र २२ तथा २३ में लिखा है कि
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com