Book Title: Prashnottar Vichar
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 105
________________ ( १०७ ) को दूसरे वस्त्र प्रादि नहीं कुने तथा पुस्तक श्रीजिनप्रतिमा को नहीं छूना पूजा दर्शन इत्यादि बहुत कृत्यों का निषेध लिखा है और अनेक दोष दुःख दंड लिखे हैं, देखिये उस पुष्पवती विचार नाम की पुस्तक में तपगच्छवालों की करी हुई सजाय में लिखा है कि ऋतुवंती नारियो परिहरे रे, बीजे वस्त्रे न अडके । सांजे रात्रे नारी मत फरो रे, मत बेसजो तडके ॥१॥ मत भालवी नार मालनी रे, छांडवा धर्म ठाम ।। प्रभु दर्शन पूजा सद्गुरु रे, वांदवा तजो नाम ॥२॥ पडिकमणुं पोसह सामायिक रे, देव वंदन माला । जल संघने रथजातरा रे, दर्शन दोष गला ॥ ३ ॥ रास वखाण धर्म कथा रे, व्रत पचख्खाण मेलो । स्तवन सजाय रास गहुंली रे, धर्मशास्त्र म खेलो ॥४॥ लखणुं लखे नहीं हाथ शुं रे, न करे धर्मचर्चा । धूपदीवो गोत्रज्जारणा रे, नहीं पूजा ने अर्चा ॥५॥ संघ जिमण प्रभावना रे, हाथे दे जो म लेजो। बलिदान पूजा प्रतिष्ठानुं रे, मत रांधीने देजो ॥ ६ ॥ पडिलामे नहीं साधु साधवी रे, वस्त्र पात्र अनुपान । रांक-ब्राह्मणने हाथे आपे नही रे, दाणा लोटने दान॥१२॥ ऋतुवंती हाथे जल भरी रे, देरा सरे जो आवे । समकित वीज पामे नहीं रे, फल नारकीनां पावे ॥२५॥ ऋतुवंती यात्राए चालतां रे, मत बेशजो गाडे । संघ तीर्थ फरस्यां थकारे, पडशो पाताल खाडे ॥२८॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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