Book Title: Prashnottar Vichar
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 103
________________ ( १०५ ) सुगंधि धूप पूजा १ अक्षत पूजा २ कुसुम प्रकर पूजा ३ दीपक पूजा ४ नैवेद्य पूजा ५ फल पूजा ६ गीत पूजा ७ नाट्यादि पूजा ८करने के बारे में उक्त सूरिजी ने निषेध नहीं लिखा है, केवल अंगपूजा का निषेध लिखा है, सो तो श्रीपूर्वाचार्य महाराज ने भी १८ गाथा प्रमाण चैत्यवंदन उसकी टीका में तरुण स्त्रियों को श्रीमूलनायक जिनप्रतिमा के चरण आदि अंग को स्पर्श करना निषेध लिखा है । क्योंकि इस काल में श्रीसिद्धाचलजी आदि तीर्थ पर भी श्रीमूलनायक जिनप्रतिमा की चंदन विलेपनादि से अंगपूजा करती हुई कई स्त्रियों को अकालवेला प्रकस्मात् महत्पाप बंधन रूप महामलिन ऋतुधर्म या जाता है । यह बात बहुत लोगों को मालूम है, तो उक्त उचित कथन को कौन बुद्धिमान् सर्वथा अनुचित कहेगा ? देखिये श्रावक भीमसीमाणक ने सर्व लोकों के हित के लिये छाप कर प्रसिद्ध की हुई "पुष्पवती विचार" नाम की पुस्तक में लिखा है कि या जगतमां समस्त प्राणीमात्र ने त्राणभूत शरण भूत भव तथा पर भवमां हितकारी सुखकारी कल्याणकारी ने मंगलकारी एव त्रण तत्त्व छे तेनां नाम कहे छे एक तो देव श्री अरिहंतजी बीज गुरुसुसाधु तथा त्रीजो धर्म ते केवली भाषित ए ऋण तच छे तेने आराधवानुं मुख्य कारण अनाशातना छे (आशातना नहीं करवी ) अने एने विराधवानुं मुख्य कारण आशातना छे ते आशातना पण विशेषेकरी अशुचिपणा थकी थाय छे इत्यादि तथा समस्त अशुचिमां महोटी अशुचि ने समस्त आशातनाओमां शिरोमणि भूत वली सर्व पाप बंधननां कारणोमां महत पापोपार्जनकरवानुं मुख्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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