Book Title: Prashnottar Vichar
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 104
________________ ( १०६ ) कारण एतो एक स्त्रिों ने जे ऋतुप्राप्त थाय छे अर्थात् जे पुष्पवती केहेवाय छे एटले स्त्रियों ने अटकाव अथवा कोरें। बेसवानुं थाय छे ते ने लोकोक्तियें ऋतधर्म कहे छेते ऋत धर्म यथार्थपणे न पालवा विषेर्नु (सर्व पाप बंधननां कारणोमां महत् पापोपार्जनकरवानुं मुख्य कारण) छे इत्यादि । तथा ा ग्रंथमां करेला उपदेश प्रमाणे जे पुमती स्त्रियो पोते प्रवर्तशे बीजा ने प्रवर्तावशे तथा प्रवर्तनार ने सहाय आपशे तेने अत्यंत लाभ थशे अने तेने परंपराए मोक्ष सुखनी माप्ति पण अवश्य थशे-जे प्राणी आग्रंथमां करेला उपदेश थी विपरीत प्रवृत्ति करसे अथवा ए वातमा शंका कांक्षा करशे ते प्राणीनी लक्ष्मी तथा बुद्धिनो या भवमां नाश थशे अने सम्यक्त्व तो तेमां होयज क्याथी अर्थात् नज होय तेना घरना अधिष्ठायिक देवो तेने मुकीजशे अने ते जीव मिथ्या दृष्टि अनंत संसारी दुराचारी तथा कदाग्रही जाणवो केमके एम करया थकी देव गुरु तथा धर्मनी महोटी आशातना थायछे ते वात या ग्रंथ वाचवा थकी विवेकीजनोना ध्यानमां तरत आवशे। इत्यादि लिख कर तपगच्छवालों की बनाई हुई ७० गाथा की ऋतुवंती स्त्री की सजाय और १८ गाथा की छोतिभास तथा अंचलगच्छवालों की करी हुई ३३ गाथा की सूतक की सजाय तथा ऋतुवंती स्त्री के अधिकार संबंधी सिद्धांतोक्त ६ गाथाओं यह चार ग्रंथ मेले छपवाये हैं, उनमें विशेषता से ऋतुवंती स्त्री Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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