Book Title: Prashnottar Vichar
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 102
________________ ( १०४ ) भावार्थ-अकालवेला में भी याने स्त्री जिनप्रतिमा की पूजा करती हैं उस समय में भी उस स्त्री को ऋतुधर्म होता है उसीलिये श्रीजिनदेव की पूजा करने में उन ऋतुधर्म आनेवाली तरुण स्त्रियों को अधिकार युक्तियुक्त नहीं है ॥ ५ ॥ लोगुत्तमदेवाणं, समच्चणे समुचित्रो इहं नेउ । सुइगुण जिठत्तणओ, लोए लोउत्तरे भूरीसेहिं ॥ ६ ॥ भावार्थ-इहाँ लोकोत्तम श्रीजिनदेव का ( समर्चन ) पूजन उसमें समुचित (शुचि गुण ) पवित्र गुण ज्येष्ठपने से लोक में और लोकोत्तर जिनधर्म में ( सूरीश ) गणधर महाराजों ने कहा जानना ॥६॥ न छिवंति जहा देहं, उसरणभावं जिणवरिंदाणं । तह तप्पडिमंपि संयं, पूअंति न जुव्यनारीओ ॥ ७॥ भावार्थ-जैसे अशुद्ध शरीर को धारण करनेवाली ऋतुवंती स्त्री अन्य वस्तु को नहीं छूती है वैसे श्रीजिनप्रतिमा को भी अपने हाथ से नहीं छूती है, इसी कारण से जवान स्त्रियाँ पूजा नहीं करती हैं याने श्रीजिनप्रतिमा की पूजा करती हुई तरुण स्त्री को अकालवेला ऋतुधर्म रुधिर पात (खून का भरना) होता है उसीलिये तरुण अवस्थावाली स्त्री श्रीमूलनायक जिन बिंब (प्रतिमा) की अपने हाथ से चंदनादि विलेपन द्वारा केवल अंगपूजा नहीं करें । यह श्रीजिनदत्तसूरिजी महाराज ने लिखा है। परंतु बाल तथा वृद्ध अवस्थावाली स्त्रियों को श्रीजिनप्रतिमा की अंगपूजा का निषेध नहीं लिखा है और तरुण स्त्री को भी सर्व प्रकार से श्रीमूलनायक जिनप्रतिमा की पूजा का निषेध नहीं किया है। क्योंकि तरुण स्त्री को धीमूलनायक जिनप्रतिमा की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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