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मुहपत्ति पड़िलेहेमित्ति भणि बीच खमासमणपुव्वं पुति पड़िलेहि खमासमणेण सामाइयं संदिसावित्र बीच खमासमापुव्वं सामाइयं ठामित्तिवृत्तं खमासमणदाणपुचं श्रद्धावणयगत्तो पंचमंगल कट्टित्ता – करेमि भंते सामाइयं इच्चाई सामाइयसूत्तं भाई पच्छा इरियं पड़िकमइ इत्यादि ।
भावार्थ - श्रीजिन मंदिर में १, अपने घर में २, साधु के पास में ३ वा पौषधशाला में ४ श्रावक सदा नवमा सामायिक व्रत उपर्युक्त खमासमण आदि शुद्ध विधि से करे उसमें करेमि भंते सामाइयं इत्यादि सामायिक सूत्र कहे पीछे ईरियावही पड़िकमे, यह श्रावकधर्मप्रकरणग्रंथ के वचन तपगच्छवाले शुद्ध श्रद्धापूर्वक स्वीकार करते हैं या नहीं ?
३ [प्रश्न ] यह है कि श्रीयावश्यक सूत्र लघुट्टीका में लिखा है कि शिक्षावतेषु यद्यत्रतमाह सामाइ नाम सावज्जजोगपरिवज्जां निरवज्जजोगपड़िसेवां च । इह श्रावको देवा श्रीमान् दरिद्रश्च द्वाasपि निरपायौ चैत्ये १ साधुसमीपे २ स्वगृहे ३ पौषधशालायां वा ४ सामायिकं प्रतिपद्येते -- करेमि भंते सामाइ सावज्जं जोगं पच्चख्खामि जावनियमं पज्जुवासामि दुविहं तिविहेां मणेणं वायाए काएं न करेमि न कारवेमि तस्स भंते पड़िकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसरामित्ति पश्चादीर्यापथिकीं प्रतिक्रमतस्ततः स्वाध्यायं कुरुत इति ।
भावार्थ - श्रावक के १२ व्रतों में नवमा सामायिक दशवाँ देशावकाशिक ग्यारहवाँ पौषध बारहवाँ प्रतिथिसंविभाग इन चार
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