Book Title: Prashnottar Vichar
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 89
________________ ( ११ ) . शिक्षाव्रतों में पहिला सामायिक व्रत का स्वरूप श्रीअावश्यक सूत्रकार श्रीमद्भद्रबाहुस्वामि चतुर्दशपूर्वधर श्रुतकेवली महाराज ने बतलाया है कि सामायिक नाम किसका है-सावद्य (पाप) योग का परिवर्जन (त्याग) और निरवद्य (पाप रहित) योग का प्रतिसेवन करना । टीकाकार कहते हैं कि यहाँ श्रावक दो प्रकार के हैं-एक श्रीमान् , दूसरा दरिद्र (१रिद्धिवंत २ अरिद्धिवंत), ये दोनों भी निर्विघ्नतावाले श्रावक जिनमंदिर में १ साधु के पास में २ अपने घर में ३ वा पौषधशाला में ४ नवमा सामायिक व्रत को स्वीकार करें । याने उपर्युक्त श्रीभद्रबाहुस्वामि के सावद्य योग का परिवर्जन इत्यादि वचनानुसार करेमि भंते सामाइयं सावज जोगं पचख्खामि इत्यादि सामायिक दंडक को पहिली उच्चर के सावध योग को त्यागे (परिवर्जन करे) पीछे ईरियावही को उक्त दोनों श्रावक पडिकमे बाद स्वाध्याय करें, यह शास्त्रकार महाराजों ने नवमा सामायिक व्रत का नाम लेकर सावद्य योग परिवर्जन रूप सामायिक की यथोचित विधि में पहिली करेमि भंते उच्चर के पीछे ईरियावही करना लिखा है, यह शास्त्रकार महाराजों की कही हुई उचित रीति को (समाचारिको) तपगच्छवाले अपनी शुद्ध श्रद्धा से यथार्थ परम सत्य मानते हैं कि अश्रद्धा से मिथ्या ? ४ [प्रश्न] यह है कि श्रीपूर्वाचार्यमहाराज विरचित श्रीश्रावश्यकचूर्णि में भी लिखा है कि एआए विहीए गंता तिविहेण साहुणो नमिऊण पच्छा साहु सख्खियं सामाइयं करेइ करेमि भंते सामाइयं सावजं जोगं पञ्चख्खामि जाव साहू पज्जुवासामित्ति काऊण [जइ चेइयाई अस्थि तो पढमं वंदति] साहुसगासायो रयहरणं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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