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बंदिऊणय गुरुणो छोभावंदणेणं संदिसावित्र सामाइय दंडगमणुकढइ जहा करेमि भंते सामाइयं सावज्जं जोगं पच्चख्खामि जात्र नियमं पज्जुवासामि दुविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि तस्स भंते पड़िकमामि निंदामि गिरिहामि अप्पां वोसिरामि तो इरियावहियं पड़िकमिउं आगमणं आलोएर पच्छा जहा जेठं साहुगो दिऊण पढ़इ सुइ वा ॥
भावार्थ- गुरु महाराज को छोभावंदना से नमस्कार करके आज्ञा माग के करेमि भंते सामायिक दंडक उच्चरे पीछे इरियावही पड़िकमे इत्यादि ये शास्त्रकारों के वचन तपगच्छवालों को मान्य हैं या नहीं ?
[प्रश्न ] यह है कि श्रीहेमाचार्य महाराज ने श्रीयोगशास्त्र की टीका में लिखा है कि
एवं कृतसामायिक ईर्यापथिकायाः प्रतिक्रामति पञ्चादागमनमालोच्य यथा ज्येष्ठमाचार्यादीन् वंदते ।
भावार्थ - उक्त रीति से सामायिक दंडक उच्चर कर पीछे इरियावही करे इत्यादि कथन शास्त्र - संमत है, सो तपगच्छवाले सत्य मानते हैं या नहीं ?
६ [ प्रश्न ] यह है कि श्रीजगच्चंद्रसूरिजी के शिष्य श्रीदेवेंद्रसूरिजी ने श्रावक दिन कृत्य सूत्र टीका में लिखा है कि
मूल - काऊाय सामाइयं, इरियं पडिक्कमिय गमणमालोए । वंदित्तु सूरिमाई, सज्जायावस्सयं कुयाइ || ३० ||
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