Book Title: Prashnottar Vichar
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 92
________________ ( ६४ ) बंदिऊणय गुरुणो छोभावंदणेणं संदिसावित्र सामाइय दंडगमणुकढइ जहा करेमि भंते सामाइयं सावज्जं जोगं पच्चख्खामि जात्र नियमं पज्जुवासामि दुविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि तस्स भंते पड़िकमामि निंदामि गिरिहामि अप्पां वोसिरामि तो इरियावहियं पड़िकमिउं आगमणं आलोएर पच्छा जहा जेठं साहुगो दिऊण पढ़इ सुइ वा ॥ भावार्थ- गुरु महाराज को छोभावंदना से नमस्कार करके आज्ञा माग के करेमि भंते सामायिक दंडक उच्चरे पीछे इरियावही पड़िकमे इत्यादि ये शास्त्रकारों के वचन तपगच्छवालों को मान्य हैं या नहीं ? [प्रश्न ] यह है कि श्रीहेमाचार्य महाराज ने श्रीयोगशास्त्र की टीका में लिखा है कि एवं कृतसामायिक ईर्यापथिकायाः प्रतिक्रामति पञ्चादागमनमालोच्य यथा ज्येष्ठमाचार्यादीन् वंदते । भावार्थ - उक्त रीति से सामायिक दंडक उच्चर कर पीछे इरियावही करे इत्यादि कथन शास्त्र - संमत है, सो तपगच्छवाले सत्य मानते हैं या नहीं ? ६ [ प्रश्न ] यह है कि श्रीजगच्चंद्रसूरिजी के शिष्य श्रीदेवेंद्रसूरिजी ने श्रावक दिन कृत्य सूत्र टीका में लिखा है कि मूल - काऊाय सामाइयं, इरियं पडिक्कमिय गमणमालोए । वंदित्तु सूरिमाई, सज्जायावस्सयं कुयाइ || ३० || www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat

Loading...

Page Navigation
1 ... 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112