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१४ [प्रश्न ] सामाइयंमिउकए समणो इव सानो हव अर्थात् दो घड़ी सामायिक में रहा हुआ श्रावक साधु तुल्य होता है, क्योंकि साधु करेमि भंते सामायिक दंडक से त्रिविध त्रिविध जावज्जीव की सामायिक बरोबर ख्याल रहने के लिये तीन बेर उच्चरता है और श्रावक भी उसी करेमि भंते सामायिक दंडक से दुविध त्रिविध जात्र नियम की सामायिक बरोबर ख्याल रहने के लिये तीन बेर उच्चरता है तो इससे तपगच्छवाले क्यों भड़कते हैं ?
१५ [ प्रश्न ] रात्रि को एक या दो पहर होने की संथारा पौरसी में साधु और पौषधव्रतधारी श्रावक अच्छी तरह ख्याल रहने के लिये तीन बेर करेमि भंते सामायिक दंडक उच्चरते हैं तो इसी तरह दो घड़ी की सामायिक करनेवाला श्रावक अच्छी तरह ख्याल रहने के लिये तीन बेर करेमि भंते सामायिक दंडक उच्चरता है सो तपगच्छ वाले उसको हितकारी क्यों नहीं मानते हैं ?
१६ [ प्रश्न ] यदि कहा जाय कि एक या दो पहर की संथारा पौरसी के विषे में तीन बेर करेमि भंते सामायिक दंडक उच्चरते हैं तथा साधु की सर्व विरति सामायिक विषे में तीन बेर करेमि भंते सामायिक दंडक उच्चराते हैं, इसको और विषय मानकर श्रावक की देशविरति सामायिक में तीन बेर करेमि भंते सामायिक दंडक उच्चराणे का परिश्रम वा आग्रह नहीं करते हैं तो श्रावक का देशविरति नवमा सामायिक व्रत में बड़े आग्रह से श्रीमहानिशीथ सूत्र का प्रमाण दिखाते हो सो तो इरियावही किये विना उत्कृष्ट चैत्यवंदनादि करना नहीं कल्पे, इस विषय का पाठ है, उसमें सामायिक का नाम या गंध भी नहीं है तो फिर इससे क्या आपकी सिद्धि हो सकती है, नहीं ? क्योंकि जहाँ जैसा विषय होता है वहाँ ग्रंथकार महाराज वैसा खुलासा
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