Book Title: Prashnottar Vichar
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 97
________________ ( εε ) करके दिखाते हैं वास्ते श्रावक के नवमा सामायिक व्रत के विषय चाले उपर्युक्त अनेक पाठों में किसी भी प्राचीन प्राचार्य महाराजों ने पहिली इरियावहि करके पीछे करेमि भंते सामायिक दंडक उच्चरणा यह आपकी सिद्धि का खुलासा नहीं दिखाया, इसका क्या कारण ? जिससे आपको और विषय के पाठों को तथा मनोकल्पित पाठ और कल्पित अर्थ को सामायिक विषय में झूठी कल्पना करके दिखाने का प्रयास लेना पड़ता है सो उक्त शास्त्र पाठों से विरुद्ध आप लोगों का यह कदाग्रह है या नहीं ? १७ [ प्रश्न ] साधु की त्रिविध त्रिविध सर्वविरति सामायिक में तीन बेर करेमि भंते सामायिक दंडक उच्चरणे का पाठ श्रावक की दुविध त्रिविध देशविरति सामायिक में तीन बेर उच्चरणा संगत नहीं मानते हो तो श्रीदशवैकालिक सूत्र की हत् टीका में साधु के आहारादि कृत्यों के विषय में इरियावही करना लिखा है, उस पाठ को बालजीवों को देखा कर अपनी कपोलकल्पना से असंगत मंतव्य क्यों बतलाते हो कि इस पाठ से श्रावक के नवमा सामायिक व्रत के इरियावहि करना और पीछे करेमि भंते उच्चरना ? विषय में पहिली सामायिक दंडक १८ [ प्रश्न ] श्रावक के ५ अणुव्रत ३ गुणव्रतों में हिंसा झूठ चोरी कुशीलादि सावद्य ( पाप ) का त्याग रूप दंडक श्रावक को ख्याल तथा हित के लिये तीन तीन बेर उच्चराते हो तो इसी तरह सामायिक देशावकाशिक पौषध इन शिक्षा व्रतों में भी हिंसा झूठ चोरी कुशीलादि सावद्य (पाप) का विशेष त्याग रूप दंडक श्रावक को ख्याल तथा हित के लिये तीन तीन बेर उच्चराणे में कौन सी दोषापत्ति मानते हो ? १६ [ प्रश्न ] जावज्जीव के सावद्य ( पाप ) योग तीन वेर करेमि भंते सामाधिक दंडक उच्चर के त्यागने तो जाव नियम के Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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