Book Title: Prashnottar Vichar
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 86
________________ ( ८८ ) सूत्रादि में चैत्य वंदनादि विधि में पहिली ईरियावही करना लिखा है तो भी ईरियावही विना, चैत्यवंदनादि करते हैं और आहारादि लेने को जाना आना इत्यादि कृत्यों में साधु बेर बेर ईरियावही करे, उसको किये विना साधु अन्य कृत्य नहीं करे। ऐसा श्रीदशवैकालिक बृहत् टीका में लिखा है । तथा श्रीपौषध विधि प्रकरणादि ग्रंथों में पर्व दिनों में ग्यारहवें पौषध व्रत की विधि में पहिली ईरियावही करके श्रावक पौषध व्रत ग्रहण करे और दो घड़ी रात्रि या दिन शेष रहते चार वा पाठपहर का ग्यारहवाँ पौषध व्रत ग्रहण किया हो तो चार या आठ पहर का पौषध सामायिक का काल दो घड़ी रात्रि शेष रहते संपूर्ण हो जाता है, इसीलिये वह ग्यारहवाँ पौषध व्रतधारी श्रावक रात्रि के पिछले पहर में निद्रा से उठके ईरियावहि पडिक्कम के कुसुमिण दुस्सुमिण आदि काउसग्ग तथा चैत्यवंदनादि करें, वह मुहपत्ति पडिलेके नवकार पूर्वक सामायिक सूत्र कह कर आदेश माँग के प्रतिक्रमण वेलापर्यंत सजाय ध्यान करे पीछे प्रतिक्रमण पडिलेहणादि करे, यह ग्यारहवाँ पौषध व्रतधारी श्रावक ने चार वा आठ पहर से ऊपर ग्रहण की हुई नवीन सामायिक में पौषध के संबंध से ईरियावही करके करेमि भंते उस ग्यारहवें पौषध व्रतधारी को उच्चरणे की है, इत्यादि अनेक अन्य विषय संबंधी प्रमाणों से (प्रतिदिन ) हमेशाँ नवमासामायिक व्रत की विधि में भी पहिली ईरियावही करके पीछे करेमि भंते उच्चरणी हम तपगच्छवाले मानते हैं तो निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तपगच्छ के श्रीआनंदसागरजी सत्य सत्य प्रकाशित करें। , १[प्रश्न ] यह है कि श्रीश्रावश्यक सूत्र की बृहत् टीका में श्रावक का नवमा सामायिक व्रत की विधि में श्रीहरिभद्रसूरिजी महाराज ने लिखा है कि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112