Book Title: Prashnottar Vichar
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 83
________________ ( ८५ ) शास्त्रसंमत उपर्युक्त सत्य वचनों से सर्वथा विपरीत महाद्वेषी के कपोलकल्पित अनेक तरह के असत्य वचनों से पराजय फल को बेर बेर प्राप्त होना ठीक नहीं है । अस्तु यदि ऐसाही प्राग्रह है तो निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तपगच्छ के श्रीआनंदसागरजी सत्य प्रकाशित करें १ प्रश्न , अंचलगच्छ की पट्टावली आदि ग्रंथों में लिखा है कि-संवत् १२८५ में श्रीजगचंद्रसूरिजी से (गाढक्रियस्तापसः) याने तापसमत-तपोट्टमत-( चांडालिकातुल्या ) पुष्पवती प्रभुपूजीकामत निकला और श्रीविजयदानसूरिजी के शिप्य धर्मसागर गणि से संवत् १६१७ में तपौष्ट्रिकमत की उत्पत्ति हुई । श्रीहीरविजयसूरिजी से संवत् १६३६ में गर्दभीमतोत्पत्ति हुई । इस तरह के तपगच्छ के १८ नाम हेतुवृत्तांत सहित लिखे हैं, उनको आपलोग सत्य मानते हो या मिथ्या ? २ [प्रश्न क्रमशश्चित्रवालकगच्छे-कविराजराजिनमसीव । श्रीभुवनचंद्रमूरिगुरुरुदियाय प्रवरतेजाः ॥१॥ तस्य, विनेयः प्रशमैकमंदिरं देवभद्रगणिपूज्यः । शुचिसमयकनकनिकषो, बभूव भुवि विदितभूरिगुणः ॥२॥ पत्पादपद्मभंगा, निस्संगाश्चंगतुंगसंवेगा। संजनितशुद्धबोद्धा, जगति जगच्चंद्रसूरिवराः ॥३॥ तेषामुभौ विनेयौ, श्रीमान् देवेंद्रसूरिरित्यायः । श्रीविजयचंद्रसूरि, द्वितीयको ऽद्वैतकीर्तिभरः ॥४॥ स्वाऽन्योरुपकाराय, श्रीमदेवेंद्रसूरिणा । धर्मरत्नस्य टीकेयं, सुखबोधा विनिर्ममे ॥५॥. ये श्लोक श्रीजगचंद्ररिजी के मुख्य शिष्य श्रीदेवेंद्रसूरि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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