Book Title: Prashnottar Vichar
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 72
________________ ( ७४ ) प्राचार्य पद ३, इन तीन वस्तुओं में से नवांगटीकाकार श्रीमद अभयदेवसूरिजी महाराज ने किस वस्तु को अर्पण किया ? [उत्तर] श्रीखरतरगच्छ की पट्टावली ग्रंथ में लिखा है कि तत्पट्टे त्रिचत्वारिंशत्तमः श्रीजिनवल्लभमूरिः स च प्रथम कूर्चापुरगच्छीयचैत्यवासिजिनेश्वरसूरेः शिष्यो ऽभूत तताच एकदा दशवैकालिकं पठन्सन् औषधादिकं कुर्वाणं अतिपमादिनं स्वगुरुं विलोक्य उद्विग्नचित्तः संजातः तदनंतरं स्वगुरुमापृच्छ्य शुद्धक्रियानिधीनां श्रीअभयदेवसूरीणां पार्वे ऽगात तदुपसंपदं गृहीत्वा तेषामेव शिष्यश्च संजातः क्रमेण सकलशास्त्राण्यऽधीत्य महाविद्वान् बभूव तथा पिंडविशुद्धिप्रकरण ? षडशीतिप्रकरण २ प्रमुखाऽनेकशास्त्राणि कृतवान् तथा दशसहस्रप्रमितबागडश्राद्धान् प्रतिबोधितवान् तथा पुनश्चित्रकूटनगरे श्रीगुरुभिः चंडिका प्रतिबोधिता जीवहिंसा त्याजिता धर्मप्रभावात्सधनीभूतसाधारणश्राद्धेन कारितस्य द्विसप्तति ७२ जिनालयमंडितश्रीमहावीरस्वामिचैत्यस्य प्रतिष्ठा कृता तथा तत्रैव पुरे संवत् सागररसस्द्र११६७मिते श्रीअभयदेवसूरिवचनाद्देवभद्राचार्येण तेषां पदस्थापना कृता । अर्थ-श्रीमहावीर स्वामी की संतान पाट परंपरा में ४२ वें पाटे नवांगटीकाकार श्रीअभयदेवसूरिजी महाराज हुए उनके पाट पर ४३ वें श्रीजिनवल्लभसूरिजी महाराज हुए धे प्रथम कूर्चापुरगच्छीय चैत्यवासी श्रीजिनेश्वरसूरिजी के शिष्य थे । एक दिन दशवकालिक सूत्र को पढ़ते हुए अति प्रमादी औषधादि करनेवाले अपने गुरु जिनेश्वरसूरिजी को देख कर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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