Book Title: Prashnottar Vichar
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 70
________________ ( ७२ ) १६ [प्रश्न तीर्थकर महाराजों के शिर पर १२ अंगुल की चूलारूप द्रव्य निक्षेपे को गिनती में मानते हो तो इसी तरह कालपुरुष के शिर पर चूलारूप अधिकमास कालचूला निक्षेपे को वा उसके ३० दिनों को गिनती में क्यों नहीं मानते हो ? ___ २० [प्रश्न] देवपूजा, प्रभावना, व्याख्यान, व्रत, पञ्चख्खान, मुनिदान, दया, प्रतिक्रमणादि दिन प्रतिबद्ध धर्मकृत्य अधिकमास में प्रतिदिन अवश्य करने बतलाते हो तो आषाढ़ चतुर्मासी से ५० दिने प्रतिबद्ध श्रीपर्युषणपर्व है सो ५० दिने दूसरे श्रावण सुदी ४ को वा ५० दिने प्रथमभाद्रपद सुदी ४ को अवश्य करने क्यों नहीं बतलाते हो ? अथवा प्रत्यक्ष आगम-विरुद्ध ८० दिने वा दूसरे भाद्रपद अधिकमास में ८० दिने अप्रतिबद्ध पर्युषण पर्व क्यों करते हो? २१ [प्रश्न] अभिवढियमि वीसा-अभिवद्धितवर्ष में जैन टिप्पने के अनुसार २० दिने श्रावण सुदी ५ को सांवत्सरिक कृत्ययुक्त गृहिज्ञात पर्युषण करना, यह पाठ श्रीभद्रबाहु स्वामी का लिखा हुआ शास्त्रों में जैसा मिलता है और-"तानिच टिप्पनानि अधुना न सम्यग् ज्ञायते ऽतो दिनपंचाशतैव पर्युषणा संगतेतिवृद्धाः।" उन जैनटिप्पने का सम्यग् ज्ञान नहीं होने से लौकिक टिप्पने के अनुसार ५० दिने दूसरे श्रावण सुदी ४ को वा ५० दिने प्रथम भाद्रपद सुदी ४ को सांवत्सरिक पर्युषण पर्व करना संगत है, यह पाठ श्रीवृद्ध पूवाचार्यों का लिखा हुआ शास्त्रों में जैसा मिलता है वैसा-"अभिवद्वियवरिसे ८० असीइ दिवसे पज्जोसविज्जइ-ऐसा पाठ कोई भी पागम में नहीं लिखा है तो ८० दिने वा दूसरे भाद्रपद अधिकमास में ८० दिने पर्युषण Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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