Book Title: Prashnottar Vichar
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 46
________________ ( 48 ) बतलाते हैं और दो अमावास्या हो तथा दो पूर्णिमा हो तो भी चतुर्दशी को पौषध आदि धर्मकृत्य निषेधने के लिये और पापकृत्य करने के वास्ते तपगच्छ वाले चतुर्दशी पर्वतिथि को दूसरी तेरस करते हैं और पहिली अमावास्या पर्वतिथि को तथा पहिली पूर्णिमा पर्वतिथि को मानना बतलाते हैं परंतु उस तेरस तिथि संबंधी कल्याणक तप तथा पौषधादि धर्मकृत्य सूर्योदययुक्त उस पहिली तेरस तिथि को करना बतलाते हैं कि उदय चतुर्दशी रूप दूसरी कल्पित तेरस को? 15 [प्रश्न] तपगच्छवाले पौषधादि धर्म कृत्य निषेधने के लिये चौदस तिथि की वृद्धि नहीं हो तो भी सूर्योदययुक्त चौदस को दूसरी तेरस करना बतलाते हैं और सूर्योदययुक्त पहिली अमावास्या को वा पहिली पूर्णिमा को चौदस करना बतलाते हैं तो उस चतुर्दशी संबंधी कल्याणक तप और पौषध आदि धर्मकृत्य सूर्योदययुक्त उस चतुर्दशी में करना बतलाते हैं कि सूर्योदययुक्त पहिली पूर्णिमा में वा पहिली अमावास्या में ? 16 [प्रश्न ] श्रीसूर्यप्रज्ञप्ति आदि जैन ज्योतिष के ग्रंथों में गणित से अपर्व तथा पर्वतिथियों का क्षय होना लिखा है किंतु तिथियों की वृद्धि होना नहीं लिखा है, याने तिथियों की वृद्धि द्वारा दूसरी तेरस या दूसरी चौदस होना इत्यादि नहीं लिखा है और लौकिक टिप्पने से दो अमावास्या या दो पूर्णिमा श्रादि पर्वतिथियों हो तो सूर्योदययुक्त चौदस पर्वतिथि को दूसरी तेरस करना इत्यादि भी नहीं लिखा है; तथापि तपगच्छवाले लौकिक टिप्पने के गणितानुसार दो अमावास्या या दो पूर्णिमा आदि पर्वतिथियाँ हों तो दो तेरस आदि अन्य अपर्वतिथियाँ करना बतलाते हैं सो श्रीसूर्यप्राप्ति श्रादि जैनज्योतिष ग्रंथों के किस पाठों के आधार से? Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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