Book Title: Prashnottar Vichar
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 61
________________ ( ६३ ) पौषो युगांते चाऽऽषाढ एव वद्धते नाऽन्ये मासास्तानि च टिप्पनानि अधुना न सम्यग् ज्ञायते ऽतो दिनपंचाशतैव पर्युषणा संगतेतिद्धाः॥ अर्थ-गृहिज्ञात पर्युषण तो वह हैं कि जिस गृहिज्ञात पर्युषण में सांवत्सरिक अतिचार का पालोचन १ केशलुंचन २ पर्युषण में कल्पसूत्र का बाँचना ३ सर्व मंदिरों में जिनदर्शन ४ अष्टमतप ( तीन उपवास ) ५ सांवत्सरिक प्रतिक्रमण करते हैं ६ और जिस गृहिज्ञात पर्युषण से दीक्षापर्याय वर्षों को गिनते हैं ७ वें गृहिज्ञात पर्युषण चंद्रवर्ष में याने जिस वर्ष में अधिकमास नहीं हो उस वर्ष में आषाढ़ चतुर्मासी से ५० दिन होने से और ७० दिन शेष रहने से अर्थात् भाद्र शुक्ल पंचमी को श्रीकालकाचार्य महाराज की आज्ञा से चतुर्थी को भी लोक प्रसिद्ध करने का है। और जो अभिवर्द्धित वर्ष में याने जिस वर्ष में अधिक मास हो उस वर्ष में जैन सिद्धांत टिप्पने के अनुसार आषाढ़ चतुर्मासी से २० दिन होने से और १०० दिन शेष रहने से अर्थात् श्रावण शुक्ल पंचमी को उपर्युक्त सांवत्सरिक कृत्ययुक्त गृहिज्ञात पर्युषण पर्व करने के हैं-ऐसा श्रीनियुक्ति चूर्णि टीकाकार महाराजों ने भागम में लिखा है, सो जैन ज्योतिष सिद्धांत के टिप्पने के अनुसार है। उन जैन टिप्पनों में निश्चय पाँच वर्ष का एक युग के मध्य भाग में ३१ वाँ दूसरा पौष मास और युग के अंत भाग में ६२ वाँ दूसरा प्रागढ़ मास ही बढ़ता है। श्रावण भाद्रपद आश्विन आदि अन्य मासों की वृद्धि लौकिक टिप्पनों में होती है, वैसी जैनटिप्पनों में नहीं होती है, वह जैन टिप्पने इस काल में अच्छी तरह जानने में नहीं पाते हैं इसीलिये लौकिक टिप्पने के अनुसार ५० दिने अर्थात् पूर्व काल में अभिवर्द्धित वर्ष में जैनटिप्पने के अनुसार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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