Book Title: Prashnottar Vichar
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 66
________________ भाद्रपद सुदी ४ को श्रीपर्युषणपर्व करना संगत है, तो ८० दिने वा दूसरे अधिक भाद्रपद सुदी ४ को ८० दिने पर्युषणपर्व असंगत क्यों करते हो? ६ [प्रश्न ] "अभिवडियंमि वीसा-तानि च टिप्पनानि अधुनान सम्यग् ज्ञायते ऽतो दिनपंचाशतैव पर्युषणा संगतेतिद्धाः" यह श्रीनियुक्ति तथा श्रीपर्युषणकल्पसूत्र टीका वाक्यों से अभिचर्द्धितवर्ष में जैनटिप्पनों में पौष या आषाढ़ मास की वृद्धि के अनुसार १०० दिन शेष रहते २० दिने श्रावण सुदी ४ को और जैनटिप्पने का सम्यग् ज्ञान के प्रभाव से लौकिक टिप्पने के अनुसार १०० दिन शेष रहते ५० दिने दूसरे श्रावण सुदी ४ को वा ५० दिने प्रथम भाद्र सुदी ४ को सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि पर्युषण कृत्य करने प्राचीन श्रीवृद्ध पूर्वाचार्य महाराजों ने संगत कहे हैं और पीछे करने मना लिखे हैं, तथापि इस प्राज्ञा का भंग करके ८० दिने वा दूसरे भाद्रपद अधिकमास की सुदी ४ को ८० दिने असंगत सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि पर्युषण कृत्य क्यों करते हो? ७[प्रश्न ] अधिकमास में क्या पूँख नहीं लगती है ? क्या पाप नहीं लगता है ? क्या अधिकमास को काक ( कौए ) भक्षण कर जाते हैं ? सो किस कारण से उस दूसरे भाद्रपद अधिकमास को वा उसके दोनों पक्षों को या उस अधिकमास के ३० रात्रि दिनों को आप गिनती में नहीं मानते हैं ? . . ८ [प्रश्न ] "गोयमा अभिवद्वियसंवच्छरस्स २६ छविसाई पन्चाई।" इस श्रीसूर्यप्रज्ञप्ति सूत्रवाक्य से गणधर श्रीगौतमस्वामी को तीर्थकर श्रीवीर परमात्मा ने स्वकीय शुद्ध प्ररूपणा द्वारा प्रधिकमास के दोनों पक्षों को गिनती में मान के प्रमिषति वर्ष Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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