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के २६ पक्ष बतलायें है तो आप लोग अपनी कपोल कल्पित महामिथ्या उत्सूत्र प्ररूपणा द्वारा अधिकमास को वा उसके दोनों पत्तों को या ३० रात्रि दिनों को गिनती में नहीं मानना क्यों बतलाते हो? और अभिवद्धित वर्ष के १२ मास २४ पक्ष ३६० रात्रि दिन किस सूत्र के वाक्य से वोलते हो?
है [प्रश्न ] मास वृद्धि नहीं हो तो चंद्रवर्ष में जैसे १२ मास २४ पक्ष ३६० रात्रि दिन वोलते हैं वैसे चंद्र चतुर्मासी में भी ४ मास ८ पक्ष १२० रात्रि दिन वोलते हैं, किंतु अभिवद्धित वर्ष की तरह अभिवद्धित चतुर्मासी हो याने श्रावण आदि मासों की वृद्धि होने से हरएक पातिक प्रतिक्रमण के अभ्युठीये में एक एक पक्ष १५-१५ रात्रि दिन गिनती में बोलते हो, इस तरह कार्तिक सुदी १४ पर्यंत सब ५ मास, १० पक्ष, १५० रात्रि दिन आप लोगों के मुख से गिनती में बोलने में आते हैं, तो फिर कार्तिक सुदी १४ के पंचमासी प्रतिक्रमण के अभ्युठीये में ४ मास, ८ पक्ष, १२० रात्रि दिन मूठी गिनती से क्यों बोलते हो ?
१० [प्रश्न ] "एगमेगस्मणं भंते पख्खस्स कतिदिवसा पएणत्ता गायमा पन्नरसदिवमा इत्यादि । अर्थात् हे भगवन् ! एक एक पक्ष के कितने दिनरात्रि ज्ञानियों ने बतलाये है ? हे गौतम, एक्कम दूज आदि १५ दिनरात्रि बतलाये है ; इत्यादि श्रीचंद्रप्रक्षति सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्रादि में लिखे हैं और लौकिक टिप्पने में १३, १४, १५, १६ दिनरात्रि के कमती बेसी समान पक्ष हो जाते है तो भी श्रीतीर्थकर आदि शानी महाराजों ने अधिक मास को चा उसके दोनों पक्षों को या उसके ३० रात्रिदिनों को गिनती में माने है, तथापि असत्य मंतव्य के कदाग्रह से गिनती में नहीं मानना, यह श्रीतीर्थकर गणघर प्रणीत किस भागम में लिखा है?
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