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दिने भाद्र सुदी ५ को पर्युषण के पश्चात् ७० दिन जघन्यता से और मध्यमता से ८० दिन ६० दिन तथा अभिवद्धित वर्ष में माल वृद्धि होने के कारण से ( अभिवद्वियंमि २० वीसा, इयरेसु ५० सवीसइ मासो) २० दिने श्रावण सुदी ५ कां पर्युषण के पश्चात् १०० दिन और आषाढ़ पूर्णिमा से कार्त्तिक पूर्णिमा पर्यंत १२० दिन तथा उत्कृष्टता से मगसिर पूर्णिमा पर्यंत ३ दस अर्थात् १३० - १४०-१५० दिन और १ मासकल्प याने दूसरा आषाढ़ अधिक मासकल्प को गिनती में लेकर मगसिर पूर्णिमा पर्यत ६ मास सालंबी स्थविरकल्पि साधुओं को ज्येष्ठ कालावग्रह से उसी क्षेत्र में रहने की आज्ञा लिखी है, परंतु दूसरे कार्त्तिक में चतुर्मासी कृत्य और ८० दिने वा दूसरे भाद्रपद में ८० दिने पर्युषण कृत्य करने की आज्ञा नहीं लिखी है। क्योंकि श्रीनिशीथचूर्णि और श्री पर्युषणमूलकल्पसूत्रादि में- “नो से कप्पड़ तं स्यणि उवायणावित्तए ।" इत्यादि वचनों से आषाढ़ चतुर्मासी से ५० वें दिन पर्युषण पर्व किये विना ५० वें दिन की रात्रि को उल्लंघना मना किया है । वास्ते इस आज्ञा का भंग करके ८० दिने वा दूसरे भाद्रपद अधिक मास में ५० दिने सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि कृत्य करने तथा १०० दिने दूसरे कार्त्तिक अधिकमास में चतुर्मासी प्रतिक्रमणादि कृत्य करने सर्वथा निर्मूल सूत्र नियुक्ति चूर्णि टीकादि से विरुद्ध है । अतएव ये आगम-संमत भी नहीं हो सकते हैं। ऐसा तपगच्छ के श्रीआनंदसागरजी स्वीकार करें और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर प्रकाशित करें
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१ [ प्रश्न ] श्रीसमवायांग सूत्र संबंधी - “सत्तरिएहिं राइदिएहि सेसेहिं वासावा पज्जो सवेइ ।” - इस ७० दिन शेष वाक्य की आज्ञा मानते हो और अधिक मास को गिनती में नहीं मानते हो
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