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( ६४ ) २० दिने श्रावण शुक्ल ४ को सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि कृत्ययुक्त गहिज्ञात पर्युषण के स्थान में जेन टिप्पने के प्रभाव से लौकिक टिप्पने के अनुसार ५० दिने दूसरे श्रावण शुक्ल ४ को वा प्रथम भाद्र शुक्ल ४ को सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि कृत्ययुक्त श्रीपर्युषण पर्व करना संगत है, ऐसा प्राचीन श्रीवृद्ध पूर्वाचार्य महाराजों का कथन है।
यदि कोई कहे कि जैनटिप्पने में पौषध और प्राषाढ़ मास बढ़ते थे, इसीलिये २० दिने श्रावण शुदी ४ को पर्युषण के पश्चात् कार्तिक सुदी १४ पर्यंत १०० दिन शेष रहने के होते थे और लौकिक टिप्पने में श्रावण भाद्रपद ग्राश्विन आदि माल बढ़ते हैं, वास्ते १ मास वा ३० दिन अधिक आगे अर्थात् ५० दिने दूसरे श्रावण शुदी ४ को वा ५० दिने स्वाभाविक प्रथम भाद्र शुदी ४ को पर्युषण के पश्चात् कार्तिक शुदी १४ पर्यंत १०० दिन शेष रहने के होते हैं परंतु कार्तिक आदि मासों की वृद्धि हो तो ५० दिने पर्युषण के पश्चात् स्वाभाविक प्रथम कार्तिक सुदी १४ पर्यत ७० दिन ही शेष रहने के होते हैं, तो उत्तर में विदित हो कि इससे ७० दिन शेष समवायांग सूत्र वचन को बाधा नहीं हो सकती है । क्योंकि नियुक्तिकार श्रीमद्भद्रबाहुस्वामी ने लिखा है कि
इय ७० सत्तरी जहगणा, ८० असीइ ६० णउइ १२० वीसुत्तरसयं च ॥ जइ वासमग्गसिरे, १५० दसरायातिणि उक्कोसा ॥१॥ काउण १ मासकप्पं, तत्येव ठियाण जइ वासमग्गसिरे ॥ सालंबणाणं ६ छम्मासियो, जेठोग्गहो होइत्ति ॥ २॥
अर्थात् चंद्रवर्ष में मास वृद्धि नहीं होने के कारण से ५०
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