Book Title: Prashnottar Vichar
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 60
________________ ( ६२ ) गृहिज्ञात पर्युषण को गृहिज्ञातमात्रा बतलाना, यह प्रत्यक्ष आगमविरुद्ध उत्सूत्र महामिथ्या प्ररूपणा है । उसको सिद्धांत, वादी क्या सत्य मानेगा ? नहीं, क्योंकि उपर्युक्त पाठों में श्रीनियुक्तिकार श्रीचूर्णिकार और श्रीटीकाकार महाराजों ने जैनटिप्पने के अनुसार अभिवर्द्धित वर्ष में २० दिने गृहिज्ञात पर्युषण लिखे हैं । वास्ते तपगच्छ के धर्मसागरजी जयविजयजी, विनयविजयजी श्रादि ने श्रीकल्पसूत्र की रची, हुई टीकाओं में गृहिज्ञाता तु द्विधा सांवत्सरिक कृत्यविशिष्टा गृहिज्ञात मात्रा च तत्र सांवत्सरिक कृत्यानि-सांवत्सरप्रतिक्रांति १ लुचनं २ चाऽष्टमं तपः ३ सर्वाऽहद्भक्तिपूजा च ४ संघस्य क्षामणं मिथः५॥१॥ इत्यादि लेख में गृहिज्ञातमात्रा यह भेद नियुक्ति चूर्णि टीकादि आगमविरुद्ध लिखा है । क्योंकि श्रीनियुक्ति आदि आगमसंमत गृहिज्ञात भेद है, उस गृहिज्ञात पर्युषण में सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि कृत्य करने लिखे हैं सो ठीक हैं, क्योंकि आपके तपगच्छनायक श्रीकुलमंडनसूरिजी महाराज ने श्रीकल्पसूत्र की अवचूरि में लिखा है कि गृहिज्ञाता यस्यां तु सांवत्सरिकाऽतिचारालोचनं १ लुचनं २ पर्युषणायां कल्पसूत्रकथनं ३ चैत्यपरिपाटी ४ अष्टमंतपः ५ सांवत्सरिकं प्रतिक्रमणं च क्रियते ६ यया च व्रतपर्यायवर्षाणि गण्यंते ७ सा चंद्रवर्षे नभस्य शुक्लपंचम्यां कालकसूर्यादेशाचतुर्थ्यामपि जनप्रकटा कार्या-यत्पुनरऽभिवदितवर्षे दिनविंशत्या पर्युषितव्यमित्युच्यते तत्सिद्धांतटिप्पनाऽनुसारेण तत्रहि युगमध्ये Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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