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ज्ञात पर्युषण भेद को नहीं मानना किंतु आगमविरुद्ध गृहिज्ञात मात्रा नामक पर्युषण भेद की उत्सूत्र प्ररूपणा करके उसको मानना तथा ८० दिने सांवत्सरिक पर्युषण कृत्य करना बतलाना और श्रीपर्युषण कल्पसूत्र आदि आगम में ५० दिन के उपरांत पर्युषण करना मना लिखा है तथापि उस आज्ञा का भंग करना । देखिये श्रीनिशीथ चूर्णिकार महाराज आगे फिर स्पष्ट लिखते हैं कि
जत्थ अधिमासगो पड़ति वरिसे तं अभिवद्वियवरिसं भणति जत्थ गण पड़ति तं चंदवरिसं सोय अधिमासगो जुगस्स ते मज्जे वा भवति जइ अंते नियमा दो आसाढा भवंति ग्रह मज्जे दो पोसा सीसो पुच्छति कम्हा अभिवद्भिय वरिसे २० वीसतिरातं चंदवरिसे ५० सवीसति मासो उच्यते जम्हा अभिवद्वियरिसे गिले चेत्र सो मासो अतिकंतो तम्हा वीस दिणा अभिगहियं तं करेंति इयरेसु तिसु चंदवरिसेसु सवसति मास इत्यर्थः ।
श्रीकल्पसूत्र टीकाकारों ने भी लिखा है कि
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इह पर्युषणा द्विधा गृहिज्ञाता गृह्यऽज्ञाता च तत्र गृहिणाम ज्ञातायां वर्षायोग्यपीठफलकादौ प्राप्ते कल्पोक्तं द्रव्य क्षेत्र कालभावस्थापना क्रियते सा चाssषाढ़ पूर्णिमायां योग्यक्षेत्राऽभावे तु पंच पंच दिनवृद्धया यावद्भाद्रपदशुक्ल पंचमी एकादशपर्वतिथिषु क्रियते गृहिज्ञातायां तु सांवत्सरिका ऽतिचारालोचनं १ लुचनं २ पर्युषणायां कल्पसूत्राऽऽकर्षणं वाकथनं ३ चैत्यपरिपाटी ४ अष्टमं तपः ५ सांवत्सरिकं च अतिक्रमणं क्रियते इत्यादि ।
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