Book Title: Prashnottar Vichar
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 59
________________ ( ६१ ) अर्थ उक्त दोनों पाठों का यह है कि जिस वर्ष में अधिकमास ज्योतिष गणित से प्रा पड़ता है उसको अभिवर्द्धित वर्ष कहते हैं और जिस वर्ष में अधिकमास ज्योतिष गणित से नहीं आ पड़ता है उसको चंद्रवर्ष कहते हैं । वह अधिक मास श्रीसूर्यप्रज्ञप्ति आदि जनज्योतिषसिद्धांत के गणित से पांच वर्ष का एक युग के अंत में और मध्य में होता है। यदि प्रत में हो तो नियम से दो आषाढ़ मास होते हैं, याने ६२ वां दूसरा आषाढ़ मास अधिक होता है, अथ मध्य में हो तो दो पौष याने जैन ज्योतिष के गणित नियम से ३१ व दूसरा पौष मास अधिक होता है । शिष्य पूछता है कि किस कारण से अभिवर्द्धित वर्ष में २० वीं रात्रि श्रावण सुदी पंचमी को गृहिज्ञात सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि कृत्ययुक्त पर्युषण करें और चंद्रवर्ष में २० रात्रिसहित १ मास याने ५० वीं रात्रि भाद्र सुदी पंचमी को गृहिज्ञात सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि कृत्ययुक्त पर्युषण करें ? उत्तर- जिस कारण से याने जैन ज्योतिष सिद्धांत गणित के टिप्पने के अनुसार अभिवर्द्धित वर्ष में शीत या ग्रीष्म ऋतु में निश्चय वह पौष या आषाढ़ एक अधिक मास प्रतिक्रांत हुआ ( वीता ) उसी लिये २० दिन अनभिग्रहित याने गृहिअज्ञात जिसमें द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव करके स्थापना पर्युषण करें, श्रौर आषाढ़ पूर्णिमा से २० रात्रि बीतने पर याने श्रावण सुदी पंचमी को गृहिज्ञात सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि कृत्ययुक्त पर्युषण करें अन्य तीन चंद्रवर्षो में ५० दिन अनभिग्रहित याने गृहि ज्ञात जिसमें द्रव्य क्षेत्र काल भाव से स्थापना पर्युषण करें और आषाढ़ पूर्णिमा से ५० रात्रि बीतने पर याने भाद्र सुदी पंचमी को गृहिशात सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि कृत्ययुक्त पर्युषण करें, ऐसा लिखा है । वास्ते ८० दिने वा दूसरे भाद्रपद अधिक मास में ८० दिने सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि कृत्ययुक्त पर्युषण स्थापन करने के लिये जैनटिप्पने के अनुसार अभिवर्द्धित वर्ष में २० दिने ; Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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