Book Title: Prashnottar Vichar
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 44
________________ ( 46 ) पूजा पञ्चख्खाणं, पडिकमणं तहय निअमग्गहणं च / ज्जाए उदेइ सूरो, ताए तिहीए उ कायव्वं // 1 // उदयंमि जा तिही सा. पमाण मियरा उ कीरमाणाणं / आणा भंगण वत्था?, मिच्छत्त२ विराहणा पावं३ // 2 // अर्थ-जिस पर्वतिथि में सूर्य उदय हुआ हो उस सूर्योदययुक्त पर्वतिथि में अवश्य पूजा पञ्चरुखान प्रतिक्रमण तथा नियम ग्रहण इत्यादि धर्मकृत्य करने चाहिये // 1 // क्योंकि सूर्योदय में जो पर्वतिथि हो सो मानना प्रमाण है ( इयरा ) अन्य अपर्वतिथियाँ करनेवालों को जैसे कि दो अष्टमी हो तो दो सप्तमी करनेवालों को तथा दो चतुर्दशी वा दो अमावास्या या दो पूर्णिमा हो तो दो तेरस करनेवालों को आज्ञाभंग अवस्था 1, मिथ्यात्व 2, पर्वतिथि पापकृत्यों से विराधने से पाप 3, ये तीन दोष अवश्य लगते हैं // 2 // १०[प्रश्न ] शास्त्रों में सूर्योदययुक्त पर्वतिथियाँ धर्मकृत्यों से मानना लिखा है, तथापि तपगच्छवाले सूर्योदययुक्त दो द्वितीया आदि पर्वतिथियाँ हो तो दो एक्कम इत्यादि करना बतलाकर पहिली 60 घड़ी की सूर्योदययुक्त द्वितीया आदि संपूर्ण पर्वतिथियों में पापकृत्य करवाते हैं और सूर्योदययुक्त 60 घड़ी की पहिली द्वितीया आदि संपूर्ण पर्वतिथियों को धर्मकृत्यों से पालना निषेधते हैं तो तपगच्छवाले दो दूज की दो एक्कम करना बतला कर एकम तिथि संबंधी कल्याणक तप और पौषध आदि धर्मकृत्यों से उस सूर्योदययुक्त पहिली एक्कम तिथि को मानना बतलाते हैं कि सूर्योदययुक्त पहिली दूजरूप दूसरी एकम को? ' क्योंकि सूर्योदययुक्त उस पहिली एकम तिथि को मानना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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