________________
( ४४ )
दो चतुर्दशी या दो अमावास्या वा दो पूर्णिमा होने पर सूर्योदययुक्त प्रथम चतुर्दशी पर्वतिथि को और दूज आदि पहिली पर्वतिथि को पापकृत्यों के द्वारा विराधने से तपगच्छवाले दोष के भागी होते हैं । और चतुर्दशी वा अमावास्या या पूर्णिमा का क्षय होने से तपगच्छवाले तेरस तिथि को पाक्षिक या चातुर्मासिक प्रतिक्रमण करते हैं सो भी आगम और आचरणा से संमत नहीं है । क्योंकि उपर्युक्त गाथा से स्पष्ट विदित होता है कि सूर्योदययुक्त चातुर्मासिक आदि पर्वतिथियों में चातुर्मासिक पाक्षिक प्रतिक्रमणादि कृत्य करने के हैं अन्य तेरस तिथि को नहीं, इस लिये चतुर्दशी का क्षय हो तो आगम-संमत पूर्णिमा, अमावास्या में और अमावास्या या पूर्णिमा का क्षय हो तो आचरणा-संमत चतुर्दशी में पाक्षिक या चातुर्मासिक प्रतिक्रमणादि कृत्य करने उचित हैं । परन्तु अमावास्या या पूर्णिमा संबंधी पाक्षिक या चातुर्मासिक प्रतिक्रमणादि कृत्य तेरस में करने युक्त नहीं, एवं पंचमी संबंधी सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि कृत्य भी तीज तिथि में करने युक्त नहीं, किंतु आचरणा से चौथ तिथि में करने और चौथ तिथि का क्षय हो तो आगम-संमत पंचमी तिथि में करने युक्त हैं । इसी तरह अष्टमी संबंधी व्रत नियमादि का पालन कुठ तिथि में करना उचित नहीं, किंतु अष्टमी का क्षय हो तो सप्तमी में करना अन्यथा अष्टमी में करना उचित है । एवं द्वितीया आदि पर्वतिथि का क्षय हो तो पूर्वतिथि में तपपूजादि नियम का पालन करना मना नहीं है, करे किंतु तीज तिथि में सांवत्सरिक प्रतिक्रमण और तेरस तिथि में पाक्षिक चातुर्मासिक प्रतिक्रमण न करे। उपर्युक्त पाठों की आज्ञा के अनुकूल उक्त रीति से अवश्य करे ।
[प्रश्न ] दो अष्टमी होने से सूर्योदययुक्त ६० घड़ी की पहिली अष्टमी पर्वतिथि को तपगच्छवाले नीलोतरी और कुशील का त्याग तथा पौषध श्रादि धर्मकृत्य नहीं करते हैं, किंतु उस
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com