________________ ( 46 ) क्योंकि अनेक शास्त्रकारों ने सूर्योदय में जो तिथि हो सो माननी प्रमाण लिखी हैं, अन्य तिथियाँ करनेवालों को प्राज्ञाभंग अवस्था 1, मिथ्यात्व 2 तथा पर्वतिथि विराधने से पाप 3, ये तीन दोष लिखे हैं / वास्ते उपर्युक्त 16 प्रश्नों के 16 उत्तर तपगच्छ के पन्याल श्रीआनंदसागरजी शास्त्रप्रमाणों से स्पष्ट रूप से अलग अलग प्रकाशित करें / किंबहुना इत्यलम् प्रसंगेन ? * तीसरा प्रश्न * तपगच्छ के श्रीमानंदसागरजी ने स्वप्रतिज्ञापत्र में लिखा है कि [ श्रावणभाद्रपदाऽन्यतरवृद्धो सांवत्सरिकप्रतिक्रांतिः कदाकार्या ? | अर्थात् लौकिक टिप्पने के अनुसार श्रावण या भद्रपद मास की वृद्धि हो तो उस अभिवर्द्धित वर्ष में सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि पर्युषण पर्व के कृत्य आषाढ़ चतुर्मासी से कितने दिने करना आगम-संमत है ? उत्तर-श्रावण मास की वृद्धि हो तो 80 दिने भाद्रपद में और भाद्रपद मास की वृद्धि हो तो दूसरे भाद्रपद अधिकमास में 80 दिने सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि पर्युषण पर्व के कृत्य करने आगम-संमत नहीं हैं किंतु 50 दिने दूसरे श्रावण में वा 50 दिने प्रथम भाद्रपद में करने आगम-संमत हैं / देखिये तपगच्छ के धर्मसागरजी ने कल्पसूत्र की कल्पकिरणावली टीका में तथा जयविजयजी ने कल्पदीपिका टीका में और विनयविजयजी ने कल्पसुबोधिका टीका में लिखा है कि गृहिज्ञाता तु द्विधा सांवत्सरिककृत्यविशिष्टा गृहिज्ञातमात्रा च तत्र सांवत्सरिककृत्यानि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com