________________ ( 50 ) सांवत्सरप्रतिक्रांति 1 लचनं 2 चाष्टमं तपः 3 / सर्वाहिद्भक्तिपूजा च 4 संघस्य क्षामणं मिथः 5 // 1 // अर्थ-गृहिज्ञात पर्युषण सांवत्सरिक कृत्ययुक्त हैं उस गृहिज्ञात पर्युषण में सांवत्सरिक कृत्य यह करने के हैं कि-सांवत्सरिक प्रतिक्रमण 1, लोच 2, अष्टम तप 3, चैत्यपरिपाटी 4, संघ को परस्पर क्षामणा करना 5, ये सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि कृत्ययुक्त गृहिज्ञात पर्युषण चंद्रवर्ष में 50 दिने और अभिवर्द्धित वर्ष में जैनटिप्पने के अनुसार 20 दिने करने के हैं, ऐसा सिद्धांतों में लिखा है। प्रमाण तपगच्छ के श्रीक्षेमकीर्तिसरिजी महाराज विरचित श्रीवृहत्कल्पसूत्र की टीका में पाठ / यथा अभिवद्धितवर्षे विंशतिरात्रे गते-इतरेषु च त्रिषु चंद्रसंवत्सरेषु सविंशतिरात्रे मासे गते-गृहिज्ञातं कुर्वति-इति / अर्थ-चंद्र संवत्सरों में प्राषाढ़ चतुर्मासी से 20 रात्रिसहित 1 मास अर्थात् 50 दिन बीतने पर और 70 दिन शेष रहने से याने भाद्र शुक्ल चतुर्थी को उपर्युक्त सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि कृत्ययुक्त गृहिज्ञात पर्युषण करने के हैं और अभिवद्धित वर्ष में जैनटिप्पने के अनुसार प्राषाढ़ चतुर्मासी से 20 रात्रि बीतने पर और 100 दिन शेष रहने से अर्थात् श्रावण शुक्ल चतुर्थी को उपर्युक्त सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि कृत्ययुक्त गृहिज्ञात पर्युषण पर्व करने के हैं, परंतु जैनटिप्पने इस काल में नहीं होने से उस पर्युषण के स्थान में लौकिक टिप्पने के अनुसार अभिवद्धित वर्ष में प्राषाढ़ चतुर्मासी से 50 दिने दूसरे श्रावण शुक्ल चतुर्थी को अथवा 50 दिने प्रथम भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को उपर्युक सांचShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com