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( ५२ ) आषाढ़ चतुर्मासी से २० दिन-प्सहित दो मास अर्थात् ८० दिने भाद्र सुदी चौथ को अथवा दूसरे भाद्रपद अधिकमास में सुदी चौथ को ८० दिने सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि पर्युषणकृत्य श्रीजिनआगम-विरुद्ध करना लिखा है, सो साधुओं को और गृहस्थों को जानने मात्र हैं, ८० दिने करने के नहीं है । क्योंकि श्रीपर्युषण कल्पसूत्रादि आगम उद्धारकर्ता श्रीमत्देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमणजी महाराज ने जैनटिपने नहीं होने से श्रीपर्युषण कल्पसूत्र मूलपाठ में लौकिक टिप्पने के अनुसार लिखा है कि
वासाण २० सवीसइराइ १ मासे विइते वासावासं पज्जोसवेमो अंतराविय से कप्पइ नो से कप्पइ तं रयणि उवायणावित्तएत्ति ।
अर्थ-आषाढ़ चतुर्मासी से वर्षाकाल के २० रात्रि-सहित १ मास अर्थात् ५० दिन बीतने पर वर्षावास के पर्युषण करते हैं और ५० दिन के अंदर भी पर्युषण करने कल्पते हैं, किंतु पर्युषण किये विना ५० वें दिन की रात्रि को उल्लंघन करना कल्पता नहीं है, यह साफ मना लिखा है। वास्ते इस आशा का भंग करके ८० दिने अथवा दूसरे भाद्रपद अधिक मास में २ महीने २० दिने पर्युषण करनेवाले प्रत्यक्ष आगम-विरुद्ध हैं ।
टुक विचार से देखिये कि आश्विन मास की वृद्धि हो तो तपगच्छवाले भी उस अभिवर्द्धित वर्ष में ५० दिने पर्युषण कृत्य करते हैं और कार्तिक में चतुर्मासी कृत्य करने से १०० दिन उस क्षेत्र में रहते हैं, उसकी शास्त्रकारों ने मना नहीं लिखी है, किंतु श्रीकल्पसूत्र की टीकाओं में न कल्पते । मूल में-नो से कप्पइ तं यणि उवायणावित्तए-याने ५०वें दिन की रात्रि को.सांवत्सरिक श्रीपर्युषणपर्व किये विना उल्लंघना नहीं कल्पता है, यह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com