Book Title: Prashnottar Vichar
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 52
________________ ( ५४ ) " आषाढ़ मास की वृद्धि होती थी, इसी लिये उस अभिवर्द्धित वर्ष में ५० दिने भाद्रसुदि ५ को नहीं किंतु २० दिने श्रावण सुदी ५ को सांवत्सरिक कृत्ययुक्त गृहिज्ञात पर्युषण करना निर्युक्तिकार श्रीभद्रबाहु स्वामी ने निशीथचूर्णिकार श्रीजिनदास महत्तराचार्य महराज ने उपर्युक्त बृहत्कल्पसूत्र टीकापाठ में तपगच्छ के श्रीक्षेमकीर्तिसूरिजी इत्यादि महाराजों ने लिखा है तथा चंद्रवर्ष में ५० दिने भाद्र सुदी ५ को करना लिखा है । क्योंकि चंद्रवर्ष में मासवृद्धि नहीं होती है । इसीलिये श्रीसमवायांगसूत्र में भी ७० वें स्थानक का अधिकार के प्रसंग से केवल चंद्रसंवत्सर संबंधी ५० दिन युक्त ७० दिन शेष रहने का पर्युषण का पाठ श्रीगणधर महाराज ने लिखा है कि समणे भगवं महावीरे वासाण २० सवीसइराइ १ मासे (५० दिन) वइकंते ७० सत्तरिएहिं राईदिएहि सेसेहिं बासावासं पज्जोसds | अर्थ - इस पाठ के अनुसार मासवृद्धि नहीं होने से चंद्रवर्ष में ७० दिन शेष रहते ५० दिने तपगच्छ तथा खरतरगच्छवाले पर्युषण पर्व के सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि कृत्य करते हैं, क्योंकि श्रमण भगवंत महावीर प्रभु चंद्रवर्ष में मासवृद्धि नहीं होने से आषाढ़ चतुर्मासी से वर्षाकाल के ५० और ७० अर्थात् १२० रात्रि दिन के चार मास का वर्षाकाल के २० रात्रि - सहित १ मास अर्थात् ५० दिन वीतने पर और ७० रात्रिदिन शेष रहने पर अर्थात् आषाढ़ चतुर्मासी से ५० दिने भाद्र शुक्ल पंचमी को वर्षाकाल में रहने रूप पर्युषण करते हैं, याने उपर्युक्त सूत्रपाठ का भावार्थ श्रीसमवायांगसूत्र की टीका में लिखा है कि ५० पंचाशति प्राक्तनेषु दिवसेषु तथाविधवसत्यऽभावादि www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat

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