Book Title: Prashnottar Vichar
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 15
________________ ( १७ ) मानना बतलाया है वह प्रत्यक्ष आगम-विरुद्ध तथा युक्ति-रहित है या नहीं ? २० [ प्रश्न ] यदि तपगच्छवाले कहें कि सब तीर्थकरों के पाँच पाँच कल्याणक जैसे मानते हैं वैसे श्रीवीर तीर्थकर के भी पांच कल्याणक मानते हैं, इसलिये गर्भापहार के द्वारा त्रिशला माता की कुक्षि में जो श्रीवीर प्रभु आये उसको कल्याणकरूप हम लोग किस तरह मानेंगे, तो हम यह कहते हैं कि सब तीर्थकर अपनी अपनी माता की कुक्षि में आये हैं उसको जैसा कल्याणकरूप मानते हैं उसी तरह श्रीवीर तीर्थकर त्रिशला माता की कुक्षि में गर्भपने से आये हैं उसको कल्याणक रूप मानना न्यायतः संगत है, तथापि आपके उक्त उपाध्यायों ने दुराग्रह से नीचगोत्रविपाकरूप, अत्यंत निंदनीयरूप, अकल्याणकरूप किस तरह मानना बताया है ? उस विषय में आपको सिद्धांतों के प्रमाण बतलाने उचित है । अन्यथा श्री समवायांगसूत्र में तथा नवांगसूत्रटीकाकार खरतरगच्छनायक श्रीमत् भयदेवसूरिजी महाराज कृत समवायांगसूत्र की टीका में लिखा है कि ―― सूत्र पाठ । समणे भगवं महावीरे तित्थगर भवग्गहणात्र छठ्ठे पोट्टिलभवरगहणे एगं वासकोड़ि सामन्नपरियागं पाउणित्ता इत्यादि । टीका पाठ । किल भगवान पोटिलाभिधानो राजपुत्रो बभूव तत्र च वर्षत्वकोटिप्रव्रज्यां पालितवान् इत्येको भवः १ ततो देवोऽभूदिति द्वितीय भवः २ ततो नंदाभिधानो राजसूनुः छत्रानगर्या Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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