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आग्रह दिखलाना यह उचित नहीं है । क्योंकि श्रीनवपदप्रकरण टीका में पौषधउपवास व्रत करने के लिये लिखा है कि
पोसह उववासो पुग्ण अहमि चउदसी चवणजम्मदीख्खा दिणे नाणे निव्वाणे चाउम्मास अठ्ठाहिपज्जुसणे || १ ||
अर्थ - पौषध उपवासव्रत अष्टमी, चतुर्दशी, पूर्णिमा, अमावास्या पर्वदिनों में और श्रीचौवीश तीर्थकर महाराजों के चवन, जन्म, दीक्षा, ज्ञान, मोक्ष कल्याणक संबंधी तिथियों में तथा चतुर्मासी अट्टाहि पर्युषणपर्व दिनों में आचरण करने योग्य है । श्रीविचारसार ग्रंथ में भी पाठ । यथा
पौषधं पर्वदिनानुष्ठानमेवेति श्रुतधरवचनानुसारेण अष्टमीचतुर्दशी पूर्णिमामावास्या - कल्याणक पर्युषण पर्व - दिवसेष्वेव पौष सामायिकयुक्तं कार्यमिति ।
अर्थ – पौवध व्रत पर्वदिन का अनुष्ठान है, यह कथन श्रीश्रुतधर महाराजों के वचनानुसार है । इसलिये अष्टमी, चतुर्दशी, पूर्णिमा, अमावास्या श्रीतीर्थकर महाराजों के कल्याणक पर्युषणा पर्व संबंधी तिथियों में सामायिक युक्त पौषध उपवास व्रत करने का है । श्रीतत्त्वार्थ भाष्य में भी पाठ । यथा-
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पौषधः पर्वेत्यऽनर्थातरं सोऽष्टमीं चतुर्दशीं पंचदशीमऽन्य मां वा तिथिमभिगृह्य चतुर्थाद्युपवासिना इत्यादि ।
श्रीतत्त्वार्थभाष्य की टीका संबंधी पाठ । यथापौषधः पर्वेति नाऽर्थांतरं सः पौषध अष्टमीं चतुर्दशीं पंचदशीमिति पूर्णिमां श्रमावास्यां च तिथिमऽन्यतमां वेति पर्युषणा
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