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या चातुर्मासिक प्रतिक्रमणादि कृत्य करना आगम और आचरणा से संमत नहीं है। क्योंकि जैसे अष्टमी के कृत्य छठ तिथि में नहीं हो सकते हैं वैसे ही अमावास्या या पूर्णिमा संबंधी पाक्षिक और चातुर्मासिक प्रतिक्रमणादि कृत्य तेरस तिथि में नहीं हो सकते हैं। और प्रतिपदा ( एक्कम ) तिथि में कदापि न हो, यह श्रीवीतराग केवली तीर्थकर महाराजों के वचन हैं, सो तपगच्छ वालों को मानने उचित हैं । अन्यथा
५ [प्रश्न ] दो अमावास्या होने से तपगच्छवाले चतुर्दशी पर्वतिथि में पाक्षिक प्रतिक्रमण तथा पौषधादि धर्मकृत्य निषेध कर पापकृत्य करते हैं और पहिली अमावास्या पतिथि में पाक्षिक प्रतिक्रमणादि कृत्य करते हैं सो किस आगमपाठ के आधार से करत हैं ? सिद्धांतपाठ दिखलावें ।
६ [प्रश्न ] दो पूणिमा होने से तपगच्छवाले चतुर्दशी पर्व तिथि में पाक्षिक या चातुर्मालिक प्रतिक्रमण तथा पौषधादि धर्मकृत्यों का निषेध करके पापकृत्य करते हैं और पहिली पूर्णिमा पर्वतिथि में पाक्षिक या चातुर्मासिक प्रतिक्रमणादि कृत्य करते हैं सो किस आगम के आधार से करते हैं ? पाठ बतलावें ।
७ [प्रश्न] दो चतुर्दशी होने पर दूसरी चतुर्दशी किंचित् समय रहती है, बाद अमावास्या या पूर्णिमा आ जाती है, उसमें तपगच्छषाले पाक्षिक या चातुर्मासिक प्रतिक्रमणादि कृत्य करते हैं
और ६० घड़ी की सूर्योदययुक्त पाहेली चतुर्दशी पर्वतिथि म पापकृत्य प्राचरते हुए उस पर्वतिथि को पाक्षिक या चातुर्मासिक प्रतिक्रमण तथा पौषध आदि धर्मकृत्यों से पालना तपगच्छवाले निषेधते हैं, और दो चतुर्दशी हो तो दो तेरस करना बतलाते हैं, इससे पाप के और पापोपदेश के भागी होते है या नहीं?
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