Book Title: Prashnottar Vichar
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 35
________________ ( ३७ ) उस चतुदशी पर्वतिथि को विराधते हैं और पौषधउपवास व्रत करना तथा हरासाग और रात्रिभोजन का त्याग ब्रह्मचर्यपालन श्रादि धर्मकृत्यों से उस चतुर्दशी पर्वतिथि को पालना निषेध करते हैं, इस से तपगच्छवाले पाप के और पापोपदेश के भागी सिद्ध होते हैं या नहीं ? क्योंकि क्षये पूर्वा तिथिः कार्या, वृद्धौ कार्या तथोत्तरा । श्रीमहावीर निर्वाणे, भव्यै र्लोकानुगैरिह ॥ १ ॥ इस श्लोक में तो लोकानुवर्ती भन्यजीवों को श्रीमहावीर निर्वाण संबंधी कार्तिक अमावास्या तिथि क्षय हो तो पूर्व तिथि करना तथा उस तिथि की वृद्धि हो तो उत्तर तिथि करना लिखा है, परंतु तपगच्छवाले पहिली अमावास्या और पहिली पूणिमा में पाक्षिक या चातुर्मासिक प्रतिक्रमणादि कृत्य करते हैं, अस्तु किंतु पास में रही हुई चतुर्दशी पर्वतिथि में पौषधादि धर्मकृत्य करने निषेध कर पापकृत्य तपगच्छवाले करते हैं सो यह मंतव्य कोई भी सिद्धांतपाठों से संमत नहीं है। ३[प्रश्न ] अमावास्या और पूर्णिमा का क्षय होने से तपगच्छवाले तयेपूर्वा० इस श्लोक से विरुद्ध तेरस अपर्वतिथि में पौषध और पाक्षिक तथा चातुर्मासिक प्रतिक्रमण करते हैं किंतु पास में रही हुई सूर्योदययुक्त चतुर्दशी पर्वतिथि में पौषध और पाक्षिक या चातुर्मासिक प्रतिक्रमण नहीं करते हैं, इससे तपगच्छ वाले आगम और आचरणा-विरुद्ध दोष के भागी होते हैं या नहीं? क्योंकि श्रीहेमाचार्य महाराज के गुरु श्रीदेवचंद्रसूरिजी महाराज ने स्वविरचित श्रीठाणावृत्ति में लिखा है कि__ एवं च कारणेणं कालगायरिएहिं चउत्थीए पन्जोसवणं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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