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अर्थ-धर्म की पुष्टि करता है इसलिये पोषध कहलाता है, याने अष्टमी आदि पर्व दिनों में [ अनुष्ठेय ] करने योग्य व्रत विशेष को पोषध कहते हैं ।
नवांगसूत्र टीकाकार श्री अभयदेवसूरिजी महाराज विरचित उपाशकदशासूत्र की टीका में पाठ । यथा
तयां पोसहोववासस्स पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा । इह पोषधशब्दो ऽष्टम्यादिपर्वसु रूढस्तत्र पोषधे उपवासः पोषधोपवासः स च श्राहारादि विषय भेदात् चतुर्विध इति ।
अर्थ - पोषधोपवास व्रत के ५ प्रतिचार जानने योग्य हैं, आचरण करने योग्य नहीं । टीका पाठ में श्री अभयदेव सूरिजी महाराज खुलासा करके लिखते हैं कि यहाँ पर याने पौषध व्रत के अधिकार में पोषध शब्द अष्टमी आदि पर्वतिथियों में रूद्र (प्रवर्तता) है। उस पोषध में उपवास किया जाता है, इसलिये पौषधोपवास कहने में आता है और वह पोषधोपवास व्रत आहारादि विषय भेद से याने आहार १ शरीर सत्कार २ कुशील ३ क्रियास्थानादि का त्याग ४ करने से, चार प्रकार का है ।
श्रीहेमचंद्राचार्य महाराज विरचित योगशास्त्र में तथा अन्य ग्रंथों में पाठ । यथा
चतुः पर्व्या चतुर्थादि कुव्यापार निषेधनं ॥ ब्रह्मचर्य क्रियास्थानादित्यागः पौषधं व्रतं ॥ १ ॥ चतुर्विधेन शुद्धेन पोषधेन समन्वितं ॥ तत पर्वदिवसे कृत्यमऽतिचारविवर्जितं ॥ १ ॥
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