Book Title: Prashnottar Vichar
Author(s): Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 29
________________ ( ३१ ) व्याख्या–पर्वदिवसे अष्टमी-चतुर्दशी-पूर्णिमाऽमावास्यापर्युषणादिपुण्यवासरे तत्सामायिकं कृत्यं कार्य कीहर समन्वितं केन पौषधेन इत्यादि । अर्थ-अष्टमी चतुर्दशी पूर्णिमा अमावास्या रूप चतुःपर्वी दिनों में तथा पर्युषण कल्याणक संबंधी पवित्र दिनों में चतुर्थादि तप करना, कुन्यापार निषेध, ब्रह्मचर्य का पालन, और क्रिया स्थानादि का त्यागरूप पौषधवत सामायिक युक्त अतिचार रहित श्रावक को करने का है। प्रिय पाठकगण ! श्रीगणधर आदि महाराजों के रचित सूत्र, टीका, चूर्णि, प्रकरण आदि उपर्युक्त अनेक सिद्धांतपाठों के अनुसार पौषध मंतन्य का निरूपण हमने लिखा है। फिर श्रीतीर्थकर महाराजों ने श्रावक के पौषथ विषय में जो प्ररूपणा की हो सो प्रमाण है। श्रीप्रात्मप्रबोधग्रन्थ में भी पौषधविषय में प्रश्नोत्तर संबंधी पाठ । यथा ननु श्रीपर्वतिथिष्वेव पौषधं तपः कुर्यान्नाऽन्यदा इति चेद,ऽत्राऽऽहुः केचित् । श्रावकेण हि पौषधतपः सर्वास्वऽपि तिथिषु कर्त्तव्यं परं यद्यऽसौ तथा कर्त्तन शक्नोति तदा पर्वतिथिषु नियमात्करोतीत्यतः पर्वग्रहणं बोध्यमिति । आवश्यक वृत्त्यादौ तु स्पष्टमेव पौषधकर्त्तव्यतायाः प्रतिदिवसं निषेधः प्रोक्तोऽस्ति इह तत्त्वं तु सर्वविद्वयं इति । अर्थ-श्री पर्वतिथियों में ही पौषध तप करना अन्य तिथि में नहीं, तो इस प्रश्न के विषय में ( प्राहुः केचित् ) कोई गच्छवादी कहता है कि श्रावक को निश्चय पौषधतप सभी तिथियों में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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