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( २५ ) और उपधान तप वहने संबंधी पौषधविषय में तपगच्छ के श्रीरत्नशेखरसूरिजी ने श्रीप्राचारप्रदीप ग्रंथ में लिखा है कि--
पौषधक्रिया तु यद्यपि महानिशीथे साक्षानोक्ता तथा साधोयोगेष्वतिशायिक्रियावत्वं सर्वप्रतीतं तथा श्राद्धानामपि उपधानेषु विलोक्यते इति ।
तथा खरतरगच्छ आदि अनेक गच्छों की समाचारी में और योगविधिप्रकरण ग्रंथों में भी लिखा है कि__यद्यपि श्रीमहानिशीथादौ उपधाने सदा पौषधग्रहण नोक्तं तथापि सर्वगच्छीय गीतार्थाचरणया उपधाने पौषधग्रहणं प्रमाणीकृतमस्तीति दृश्यते इति ।
अर्थ-यद्यपि श्रीमहानिशीथसूत्रादि सिद्धांतों में उपधान में सदा पौषधग्रहण करना नहीं लिखा है तथापि साधु के योग में क्रिया की तरह श्रावक के उपधान में भी पौषधग्रहण करना सर्वगच्छीय गीतार्थ आचरणा से प्रमाण किया है । ऐसा देखने में प्राता है।
पाठकगण ! उपधान में सदा पौषध की तरह सर्वदा काल पर्व अपर्व रूप प्रतिदिवसों में पौषधवत श्रावक को आचरणे में नहीं आता है, अतएव शास्त्राज्ञा के अनुसार विशेष लाभ के लिये चतुदशी आदि पर्वदिनों में तथा श्रीपर्युषणपर्व में और श्रीचौवीश तीर्थकरों के कल्याणक संबंधी प्रतिपदा आदि अनेक पर्वतिथियों में पौषधउपवास व्रत करना उचित है किंतु उन पर्वतिथियों में नहीं करना और अपर्वतिथियों में करने का
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