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में आते हैं उसको तपगच्छ वाले आश्चर्य रूप गर्भापहार की तरह नीचगोत्रविपाकरूप मानते हैं या उच्चगोत्र कर्मविपाकोदयरूप?
और देवानंदा ब्राह्मणी की कुक्षि में श्रीवीरप्रभु उत्पन्न हुए वह भी आश्चर्यरूप है उसको आश्चर्यरूप गर्भापहार की तरह तपगच्छ वालों ने अत्यंत निंदनीयरूप अकल्याणकरूप नहीं मानकर कल्याणकरूप किस तरह मान लिया ? और श्रीवीर तीर्थकर को कैवल्य ज्ञान होने पर प्रथमदेशना निष्फल गई वह भी पाश्चर्यरूप है इसलिये उस देशना को आश्चर्यरूप गर्भापहार की तरह तपगच्छ वाले क्या अत्यंत निंदनीय रूप मानते हैं ?
तथा मूल विमान में बैठ कर सूर्यचन्द्र यह दोनों इन्द्र श्री वीर प्रभु को वंदना करने को आये यह भी आश्चर्यरूप है उसको अश्चर्यरूप गर्भापहार की तरह तपगच्छ वाले क्या अत्यंत निंदनीयरूप मानते हैं ?
___ और एक समय में श्रीषभदेव आदि १०८ उत्कृष्ट अवगाहना वाले सिद्ध हुए हैं वह भी आश्चर्यरूप माना है और इसी प्रकार कुंभराजा की पुत्री माता प्रभावती रानी की कुक्षि से मल्लीकुमारी तीर्थकरी हुई यह भी महाआश्चर्यरूप है, परन्तु इन आश्चर्यो को तपगच्छ के उक्त उपाध्याय महाराजों ने पाश्चर्यरूप गर्भापहार की तरह अत्यंत निंदनीयरूप अकल्याणकरूप न मानकर जैसा कल्याणकरूप ही माना है वैसा ही पाश्चर्यरूप गर्भापहारद्वारा माता श्रीत्रिशलारानी की कुक्षि में श्रीवीर प्रभु का प्राना कल्याणकरूप मानना न्यायतः युक्तियुक्त है। तथापि तपगच्छ के उक्त उपाध्यायों ने अपने मनसे ही नीचगोत्रविपाकरूप, अत्यंत निंदनीयकप, प्रकल्याणकस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com