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तपस्वी के पास पहुंचे और उसे समझाने का प्रयत्न किया कि यह तप नहीं कुतप है और जिस लकड़ी को वह जला रहा है,उसमें नाग नामिन जल रहे हैं, लकड़ी फाड़ कर नाग नागिन निकाले गये (पार्श्वनाथ ने उन्हें णमोकार मंत्र सुनाया, जिससे मरकर वे धरणेन्द्र पद्मावती हुए और पार्श्वनाथ की पूजा की।- - -
पार्श्वनाथ के विवाह के अनेक प्रस्ताव आये माता-पिता उनका विवाह करना चाहते थे,किंतु उन्होंने विवाह नहीं किया और विरक्त हो गये, लौकान्तिक देवों ने आकर उनका वैराग्यवर्धन किया,पार्श्वनाथ ने वन में जाकर पंचमुष्टि द्वारा केशलोंच कर दीक्षा धारण कर ली, दीक्षा लेते ही उन्हें मनःपर्यय ज्ञान हो गया, वे वन में प्रतिमायोग धारण कर स्थित हो गये। कमठ का जीव भूतानन्ददेव आकाश मार्ग से जा रहा था,पार्श्वनाथ के प्रभाव से उसका विमान रूक गया,उसकी दृष्टि पार्श्वनाथ पर पड़ी और पूर्व बैर का स्मरण कर उन पर बाण वर्षा करने लगा तो तीर्थंकर के प्रभाव से पुष्पवृष्टि बन गयी।धरणेन्द्र पद्मावती को जब इस उपसर्ग. का पता चला तो तत्क्षण वहां आकर उन्होंने उपसर्ग का निवारण किया। पार्श्वनाथ ने शुक्लध्यान द्वारा ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी, मोहनीय और अन्तराय चारों घातिया कर्मों को नष्ट कर केवल ज्ञान प्राप्त किया, देवों द्वारा जयनाद को सुनकर भूतानन्द आश्चर्य चकित हो गया और स्वयं भी तीर्थकर की स्तुति करने लगा।
इन्द्र की आज्ञा से कुबेर ने समवशरण की रचना की, सभी प्राणी भगवान का उपदेश सुनकर प्रसन्न हुए।तत्पश्चात् एक मास का योगनिरोध कर वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र चारों अघातिया कर्मों को भी नष्ट कर भगवान ने निर्वाणलक्ष्मी को प्राप्त किया।
शास्त्रीय लक्षणों के अनुसार पार्श्वनाथ चरित महाकाव्य है।इसमें १२ सर्ग हैं ।मंगलस्तवन पूर्वक काव्य का प्रारंभ हुआ है।नगर, वन, पर्वत, नदियां, समुद्र, उषा, सन्ध्या, रजनी, चन्द्रोदय, प्रभात आदि प्राकृतिक दृश्यों के वर्णन के साथ जन्म, विवाह, युद्ध, सामाजिक उत्सव, श्रृंगार, करूण आदि रसों का कलात्मक वर्णन पाया जाता है।तीर्थकर के चरित के अतिरिक्त राजा महाराजा, सेठ-साहूकार, किरात-भील, चांडाल आदि के चरित्र चित्रण के साथ पशु पक्षियों के चरित्र भी प्रस्तुत किये गये हैं।
प्रस्तुत काव्य का अंगी रस शान्त है और अंग रूप में श्रृंगार, करूण, वीर, भयानक, वीभत्स और रौद्र रसों का भी नियोजन पाया जाता है।चरित्र चित्रण की दृष्टि से भी यह सफल महाकाव्य है।प्रतिनायक कमठ ईर्ष्या द्वेष, हिंसा एवं अशुभ रागात्मक प्रवृत्तियों के कारण अनेक जन्मों में नाना प्रकार के कष्ट भोगता है, किंतु नायक मरूभूति का जीव प्रतिनायक के साथ सदैव सहानुभूति रखता है। प्रकृतिचित्रण और अलंकार योजना की दृष्टि से भी यह महाकाव्य उच्चकोटि का है।