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संवित्स्वभाव वाले जीव के रागादि कारण मदिरादि के समान हैं, उन रागादि हेतुओं से आगन्तुक कर्म बन्धते हैं, यह परंपरा अनादि मानी गयी है।मोक्षमार्ग के विषय सात प्रकार के तत्व हैं-"जीवाजीवाश्रवबंधसंवनिर्जरामोक्षास्तत्वम" इस सूत्र के अनुसार जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष सात तत्व मोक्षमार्ग का विषय हैं, इनका निर्णय होने पर ही मोक्षमार्ग में प्रवृत्ति होने से।।139 ।।
न हि जीवस्यानिर्णये तत्प्रवृत्तिरनिर्णीतस्या पवर्गार्थित्वासंभवात् । नाप्य - जीवस्य तदा तत्संबंधस्य संबंधस्यानवगमेन तद्वियोगकांक्षानुत्पत्तेः । नाप्याश्रवस्य बंधस्य च तन्निदान निवर्त्तनद्वारेण शक्यनिवर्त्तनत्वानवगमेन कस्यचित्तन्निवर्त्त नायोद्यमानुपपत्तेः । नापि संवरस्य निर्जरामोक्षयोर्वा तदापि तस्य तन्निदानप्रत्यनी - कत्वस्य तयोर्बधविश्लेषस्वभावत्वस्य चानवगमेन तदनुपपत्तेः। कुतस्तर्हि जीवादेर्निश्चय इति चेत् न, ज्ञानस्यैव स्वपरसंवेदनस्वभावस्यान्वयिनो जीवत्वात्तस्य च . क्रमानिरूपणे न निर्णयात, तद्विलक्षणस्याजीवस्य बंधतदास्त्रवयोश्च मार्गात्तदास्त्रवनिरोधस्या तद्दारेण बंधनिर्हरणस्याप्येक देशसकल विकल्पस्योक्तनिर्णयत्वात् ।।140 ।।
जीव का निर्णय नहीं होने पर उसकी मोक्षमार्ग में प्रवृत्ति नहीं हो सकती, जिसका निर्णय नहीं है उसके मोक्ष का प्रयोजन असंभव होने से अजीव का निर्णय नहीं होने पर भी मोक्षमार्ग में प्रवृत्ति नहीं हो सकती, अजीव को जाने बिना जीव और अजीव के संबंध को न जानने के कारण उसके वियोग की इच्छा नहीं उत्पन्न होने से आस्रव और बंध का निर्णय हुए बिना भी मोक्षमार्ग में प्रवृत्ति नहीं हो सकती, बंध के कारणों को दूर करने के द्वारा बंध की समाप्ति को जाने बिना किसी का उसकी समाप्ति के लिए प्रयत्न नहीं होने से संवर, निर्जरा और मोक्ष के अनिर्णय में भी मोक्षमार्ग में प्रवृत्ति नहीं हो सकती।इनको जाने बिना भी बंध के कारणों के विपरीत संवर को तथा निर्जरा और मोक्ष के बंध को पृथक करने के स्वभाव को जाने बिना मोक्ष के लिए प्रयत्न नहीं किया जा सकता।जीवादि का निश्चय कैसे होता है?यह कहना ठीक नहीं है, स्वपरसंवेदन स्वभाव वाले जीव के साथ सदैव रहने वाले ज्ञान को ही जीवत्व होने से और उक्त क्रम का निरूपण नहीं होने पर जीव का भी निर्णय नहीं होने से ।उससे विलक्षण अजीव, बंध तथा उनके आस्रव का, आस्रव निरोध (संवर) के द्वारा बंध को रोकने का तथा एकदेश कर्मों के क्षय रूप निर्जरा और सकलदेश क्षयरूप मोक्ष का उक्त प्रकार से निर्णय होने से जीवादि का निश्चय होता है।।140।।
'पुंस इति शेषः । 'अनवगमसमये।
निदानं कारणं। * तस्य निदानं तस्य प्रत्यनीकस्य भावस्तत्वं। --
संवरस्य। 6 एकदेशेन निर्जरा, सकलदेशेन मोक्षः ।
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