Book Title: Pramana Nirnay
Author(s): Vadirajsuri, Surajmukhi Jain
Publisher: Anekant Gyanmandir Shodh Sansthan

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Page 135
________________ ३.शोध ग्रन्थालय :-- इमसें अद्यतन धर्म, सिद्धान्त, अध्यात्म, न्याय, व्याकरण, पुराण, बालसाहित्य और दार्शनिक विषयों से संबंधित लगभग 7000 से भी अधिक ग्रन्थों का संकलन किया जा चुका है। ग्रन्थालय में लगभग 70 साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक शोध पत्रिकाएँ भी नियमित रूप से आती हैं। शोध ग्रन्थालय विशाल दो हालों में व्यवस्थित रूप से स्थापित किया गया है, ग्रन्थराज लगभग 70 अलमारियों में विराजित हैं। इन ग्रन्थों का उपयोग स्थानीय श्रावकों के अलावा शोधर्थियों मुनिसंघों में भी किया जाता है। ४.अनेकान्त दर्पण वार्षिक पत्रिका का प्रकाशन - अनेकान्त ज्ञान मंदिर की गतिविधियों एवं शोधपरक प्रवृत्तियों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से संस्था द्वारा वार्षिक शोध पत्रिका का प्रकाशन किया जाता है। ५.संस्थान समाचार का प्रकाशन -- जन-जन तक इस संस्थान की गतिविधियों को जोड़ने के उद्देश्य से संस्थान समाचार द्विमासिक पत्रिका का प्रकाशन किया जाता है। ६.अतिथि भोजनालय - शोध संस्थान में आगत त्यागी व्रतियों, विद्वानों एवं अतिथियों को शुद्ध भोजन उपलब्ध हो, इस दृष्टि से भोजनशाला सुचारू रूप से दानदाताओं के सहयोग से चल रही है। ७.संगोष्ठियों एवं शिविरों का आयोजन - संस्थान प्रतिवर्ष अपने स्थापना दिवस पर विद्वानों को संस्थान से जोड़ने के उद्देश्य से विभिन्न विषयों पर संगोष्ठी को आयोजन करता आ रहा है। ग्रीष्मावकाश एवं शीतकाल आदि के अवसर पर संस्थान द्वारा धार्मिक शिक्षण शिविरों का आयोजन स्थानीय एवं अन्य स्थलों पर किया जाता है। ८.अनेकान्त वाचनालयों की स्थापना:- भगवान महावीर स्वामी की 2600वीं जन्म जयंती के सन्दर्भ में विभिन्न 26 स्थानों पर अनेकान्त वाचनालयों की स्थापना का कार्य संस्थान द्वारा किया जा रहा है। ये सभी वाचनालय अनेकान्त ज्ञान मंदिर शोध संस्थान बीना से सम्बद्ध होकर स्थानीय रूप में श्रुत संरक्षण एवं प्रचार-प्रसार के कार्य में संलग्न रहेंगे। अभी तक 9 स्थानों पर वाचनालय प्रारम्भ किये जा चुके हैं। प्रस्तावित निर्माणाधीन योजनाउँ 1. बुन्देलखण्ड में जैन संस्कृति का उन्नयन एवं विकास की समायोजना : बुन्देलखण्ड धरा का वैभव ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, पुरातात्विक आदि दृष्टिओं से विशिष्ट स्थान रखता है, किन्तु यत्र-तत्र विखरा हुआ है। आज तक कोई ऐसा समग्र ग्रन्थ प्रकाशित नहीं हुआ, जिसमें समस्त वैभव को संकलित किया गया हो। संस्थान के विभिन्न मनीषियों के निर्देशन में यह कार्य प्रारम्भ किया है, ग्रन्थ में निर्धारित कतिपय बिन्दु इस प्रकार रहेंगे - . II

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