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परिशिष्ट संस्थान का अभिनव परिचय
बुन्देलखण्ड की पावन प्रसूता वसुंधरा बोना (सागर) म0प्र0 में 20 फरवरी 1992 को संतशिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के सुयोग्य शिष्य मुनि श्री 108 सरल सागर जी महाराज के पुनीत सानिध्य में बाल ब्र0 संदीप जी 'सरल' के भागीरथ प्रयासों से इस संस्थान का शुभारम्भ किया गया है। यह संस्थान जैनागम एवं जैन संस्कृति की अमूल्य धरोहर के संरक्षण व प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित है तथा अपने इष्ट उद्देश्यों को मूर्तरूप देने हेतु रचनात्मक कार्यों में जुटा हुआ है। संस्थान के अभ्युदय उत्थान में समस्त आचार्यों एवं मुनिराजों का आशीर्वाद मिल रहा है।
अनेकान्त ज्ञान मंदिर शोध संस्थान के उद्देश्य 1. जैन दर्शन/धर्म/संस्कृति/साहित्य विषयक प्राचीन हस्तलिखित प्रकाशित/ अप्रकाशित ग्रन्थों/पाण्डुलिपियों का अन्वेषण, एकत्रीकरण, सूचीकरण एवं वैज्ञानिक तरीकों से संरक्षित करना। 2. अप्रकाशित पाण्डुलिपियों का प्रकाशन करवाना। 3. जैन विद्याओं के अध्येताओं व शोधार्थियों को शोध अध्ययन एवं मुनिसंघों के पठन पाठन हेतु जैनागम साहित्य सुलभ कराना 4 अन्य आवश्यक संसाधन जुटाना। 4. सेवानिवृत्त प्रज्ञापुरूषों, श्रावकों एवं त्यागी वृन्दों के लिए स्वाध्याय/ शोधाध्ययन सात्विक चर्या के साथ उन्हें संयमाचरण का मार्ग प्रशस्त करने हेतु अनेकान्त प्रज्ञाश्रम/समाधि साधना केन्द्र के अन्तर्गत समस्त सुविधाओं के संसाधन जुटाना। 5. संस्था के माध्यम से शिक्षा को आधार बनाकर बालकों में नैतिक/चारित्रिक उन्नयन हेतु "अनेकान्त बाल संस्कार केन्द्र" का संचालन करते हुए जीवनोपयोगी टेक्नीकल शिक्षा जैन कम्प्यूटर आदि के शिक्षण हेतु संसाधन जुटाना।
सस्थान द्वारा संचालित गतिविधिया १. पाण्डुलिपियों का संग्रहण - अनेक असुरक्षित स्थलों से प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थों को "शास्त्रोद्धार शास्त्र सुरक्षा अभियान" के अन्तर्गत संकलन का कार्य द्रुत गति से चल रहा है। अनेक प्रांतों के लगभग 450 स्थलों से 3000 हस्तलिखित ग्रन्थों का संकलन करके सूचीकरण का कार्य किया जा चुका है। लगभग 5C दुर्लभ ताडपत्र ग्रन्थों का भी संकलन किया जा चुका है। २. पाण्डुलिपियों का कम्प्यूटराइजेशन - शास्त्र भण्डार के सभी हजारों ग्रन्थों को सूचीबद्ध करना उल्लेखनीय विशिष्ट शास्त्रों की सी. डी. बनाने के कार्य हेतु संस्थान सचेष्ट है, ताकि सभी ग्रन्थों का एकत्र संकलन होकर संरक्षित हो सके, तथा इनका उपयोग शोधार्थी कर सकें।