Book Title: Pramana Nirnay
Author(s): Vadirajsuri, Surajmukhi Jain
Publisher: Anekant Gyanmandir Shodh Sansthan

View full book text
Previous | Next

Page 47
________________ तद्विकलं च सौगतपरिकल्पितं दर्शनमविसंवादो हि इत्थं गेयमित्थं चित्र'मित्यभिसन्धिकरणमेवा - “भिप्रायनिवेदनादविसंवादन " - मिति वचनात् । न च तन्निवेदनमव्यवसायस्य, अज्ञविषदर्शनस्यापि तत्प्रसंगात् । अव्यसायस्यापि दर्शनस्य व्यवसायजननात्तन्निवेदनमिति चेन्न । अव्यवसायाद् व्यवसायस्य गर्दभादश्वस्येवानुपपत्तेः। व्यवसायवासनोन्मील' नेनाव्यवसायस्यापि व्यवसायहेतुत्वं दर्शनस्येति चेन्न।तद्वदर्थस्यैव तद्धेतुत्वप्रसंगेन अन्तर्गडुनो' दर्शनस्याकल्पनापत्तेः । 'व्यवसायहेतुत्वेन चाविसंवादित्वमौपचारिकमेव दर्शनस्य स्यात् । मुख्यतः संनिपत्याभिप्राय निवेदनेन व्यवसायस्यैव तदुपपत्तेः । न च ततस्तस्य प्रामाण्यं । 'सन्निकर्षादावपि तत्प्रसङ्गात्।ततो युक्तमविसंवादवैकल्याद्दर्शनमप्रमाणमिति तदुक्तम् ।।40 ।। हमारे यहां परामर्श भाव नित्यप्रसक्त नहीं है, परामर्श के बिना भी मनोव्यवसाय को अव्युत्पत्ति आदि के विरोधी रूप में ही होने से । अव्युत्पत्ति आदि के अविरोधी होने पर उसको प्रमाणता नहीं है, अविसंवाद विकल होने के कारण। कहा भी है- जो अविसंवाद से रहित है वह प्रमाण नहीं है जैसे अज्ञानी का विषदर्शन | सौगतों द्वारा कल्पित दर्शन अविसंवाद रहित है ।" इस प्रकार गाना चाहिये, इस प्रकार चित्र बनाना चाहिये, इस प्रकार का अभिप्रायनिवेदन नहीं है" ऐसा वचन होने से। अव्यवसाय का अभिप्रायनिवेदन नहीं है अन्यथा अज्ञानी के विषदर्शन को भी अभिप्राय निवेदन का प्रसंग आयेगा | व्यवसायरहित दर्शन भी व्यवसाय को उत्पन्न करने के कारण अभिप्राय निवेदन करता है, यह नहीं कह सकते। जैसे गधे से घोड़े की उत्पत्ति नहीं हो सकती । व्यवसाय की वासना को प्रकट करने के कारण अव्यवसायरूप दर्शन व्यवसाय का कारण है, यह कहना भी ठीक नहीं है । इस प्रकार तो दर्शन के समान अर्थ को ही व्यवसाय हेतु का प्रसंग आने से दर्शन की कल्पना निरर्थक ही हो जायगी । फिर व्यवसाय का कारण होने से दर्शन को अविसंवादता औपचारिक ही होगी, मुख्यतः अभिप्राय निवेदन करने के कारण व्यवसाय को ही अविसंवादित्व होगा । औपचारिकरूप से अविसंवादिता होने से दर्शन को प्रमाणता नहीं हो सकती । यदि औपचारिक रूप से अविसंवादित्व के कारण दर्शन को प्रमाण माना जायगा तो सन्निकर्ष आदि में भी प्रमाणता का प्रसंग आयेगा | 140 || भी है— 1 अभिप्रायकरणमेव । 2 विषदर्शनवत् सर्वमज्ञस्यां कल्पनात्मकम् । दर्शनं न प्रमाणं स्यादविसंवादहानितः । । 1 । । इति अतः ठीक ही कहा है कि अविसंवाद रहित होने के कारण दर्शन अप्रमाण है । कहा 3 प्राकट्येन । निरर्थकस्य । 5 अव्यवधानेन । 4 वसः, दर्शनस्येत्यर्थः । ● अन्यथेति शेषः । 7 अव्यवसायात्मकम् । 24

Loading...

Page Navigation
1 ... 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140