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तर्कश्चेत्थमेव संभवति नानित्थमिति व्याप्तिपरिज्ञानात्मा, प्रमाणं, विना तेन लिंगसाध्याविनाभावस्य दुरवबोधत्वात्। न हि प्रत्यक्षतस्तस्यावबोधस्तेन 'संनिहितविषयबलभाबिना देशकालानवच्छेदेन तस्यानवगमात्। तदवच्छेदेनावगतात्तु ततो नानुमानमन्यत्राऽन्यदा तदभावेऽपि तद्भावशंकनस्यानिवृत्तेः। .
- तर्क भी ऐसा ही हो सकता है, दूसरे प्रकार का नहीं इस प्रकार व्याप्ति का ज्ञान कराने वाला प्रमाण है।उसके बिना हेतु और साध्य के अविनाभाव का ज्ञान कठिन होने से प्रत्यक्ष से तो हेतु और साध्य के अविनाभाव का ज्ञान होता नहीं, प्रत्यक्ष से चक्षु आदि से संबद्ध वर्तमान विषय को ही जानने वाला होने से दूसरे देश और काल की बात को नहीं जानने से।देशकाल से भिन्न को प्रत्यक्ष के जानने पर अनुमान नहीं होगा।
प्रत्यक्षपृष्ठभाविनो विकल्पात् तर्हि तथा तस्यावगमः। प्रत्यक्षं पौनःपुन्येन साधनस्य साध्यान्वयव्यतिरेकानुविधानमन्वीक्षमाणं सर्वत्र सर्वदाप्येतदेतेन बिना न भवतीतिविकल्पकं ज्ञानमुपजनयति इति चेन्न, 'तेनाप्यप्रमाणेनतदवगमानुपपत्तेः। प्रमाणत्वमपि न तस्य प्रत्यक्षत्वेन विचारकत्वात्तद्वतः 'सर्वदर्शित्वापत्तेश्च । नाप्यनुमानत्वेनानवस्थापत्तेः। तदनुमानलिंगाविनाभावस्याप्यन्यस्मादनुमानादवगम इत्यपरापरस्यानुमानस्यापेक्षणात्। तस्मात्प्रत्यक्षानुमानाभ्यामन्यतयैवायं विकल्पः प्रमाणयितव्य, इत्युपपन्नं तस्यापि तर्काभिधानस्य प्रामाण्यम्, अन्यथा लिंगसाध्या विनाभावनियमस्य ततोऽनवगमप्रसंगात् ।ततो युक्तं स्मृत्यादेरौपचारिकस्यानुमानस्य प्रामाण्यम्।।71||
दूसरे देश और दूसरे काल में विषय के नहीं होने पर भी उसके होने, की शंका का निवारण नहीं होने से।
सौगत कहते हैं-प्रत्यक्ष के बाद होने वाले विकल्प ज्ञान से उसका ज्ञान होता है।प्रत्यक्ष (निर्विकल्पक ज्ञान) बारबार हेतु का साध्य के साथ अन्वय और व्यतिरेक को देखते हुए सर्वत्र सर्वदा यह इसके बिना नहीं होता, इस विकल्प ज्ञान को उत्पन्न करता है, उनका यह कहना भी ठीक नहीं है, उस अप्रमाण रूप विकल्प ज्ञान से उसके ज्ञान की उत्पत्ति नहीं होने से विकल्प ज्ञान को सुगत के यहां प्रमाण नहीं माना है, निर्विकल्प को ही प्रमाण माना गया है और निर्विकल्प ज्ञान वाले को इस प्रकार सर्वदर्शित्व का प्रसंग आता है।अनुमान से भी नहीं कह सकते, अनवस्था का प्रसंग होने से उस अनुमान के साधन के अविनाभाव का अन्य अनुमान से ज्ञान होगा, इस प्रकार दूसरे दूसरे अनुमान की अपेक्षा होने
' अवलंबनसामर्थ्यात् , संबद्धं वर्तमानं च चक्षुरादिना गृह्यत इति वचनात् । 2 अनियमेन।
सौगतः। •विकल्पज्ञानेन।
। स्वयं।
'पुरुषस्य।
त्रैलोक्यत्रैकाल्यवर्त्यस्मदादिप्रत्यक्षागोचरे सकलसाध्यसाधनव्यक्तिसाक्षात्करणवदशेषातीद्रियार्थसाक्षात्करणोपपत्तेरिति भावः । 'तर्कत्वेन प्रामाण्याभावे।